सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मुजफ्फरनगर में जोखिम नहीं उठा रहे स्ट्रीट वेंडर्स! अब भी कई दुकानों के आगे लगे हैं ‘नेमप्लेट’

फरमान अली ने कहा, "बिक्री पहले की तुलना में दस गुना कम हो गई है. पहले मैं कांवर यात्रा के दौरान एक दिन में करीब सौ शीरमल बेचता था… अब मैं 10 बेचता हूं… पिछले साल तक मैं कांवर के दौरान शाकाहारी भोजन और नाश्ता बेचने वाली एक रेहड़ी भी चलाता था. लेकिन अब कौन लड़ाई-झगड़े में पड़ने की हिम्मत करेगा?”
Kanwar Yatra Nameplate Controversy

कांवर यात्रा करते भक्तों की तस्वीर

Kanwar Yatra Nameplate Controversy:  उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में कांवर रूट पर दुकानों और रेहड़ी वालों को अपना नाम लिखने का आदेश दिया था. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. शीर्ष अदालत ने योगी सरकार के आदेश पर स्टे लगा दिया. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यूपी, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया. अपने आदेश में सर्वोच्च अदालत ने कहा कि कोई भी दुकानदार नेमप्लेट लगाने के लिए बाध्य नहीं है. दुकान मालिकों और कर्मचारियों को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.  हालांकि, आज फिर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई. एससी ने योगी सरकार के आदेश पर अंतरिम रोक की अवधि बढ़ा दी है. मामले में अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी.

मुजफ्फरनगर में असर नहीं

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मुजफ्फरनगर में कुछ खास असर नजर नहीं आ रहा है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुजफ्फरनगर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. कुछ स्ट्रीट वेंडर्स को छोड़कर, लगभग सभी खाने-पीने की दुकानों पर नए नेमप्लेट लगे हुए हैं.

कम से कम कुछ भोजनालयों ने भ्रम की स्थिति के बजाय सावधानी बरतते हुए बंद कर दिया है. 50 साल के अहमद भोजनालय के मालिक वसीम अहमद ने भी अपना रेस्तरां बंद कर दिया है. पिछले साल तक  हरिद्वार के बाईपास रोड पर चहल-पहल वाला ‘गणपति टूरिस्ट ढाबा’ चलाते थे. उनके सह-मालिक हिंदू थे,  इसलिए ढाबे का नाम हिंदुओं के नाम पर रखा गया. वसीम अहमद कहते हैं, “हमारे सभी कर्मचारी भी हिंदू थे. नौ साल तक कोई समस्या नहीं हुई. लेकिन 2023 में कुछ लोगों ने भोजनालय में तोड़फोड़ की. उन पर कांवरियों को “अशुद्ध भोजन” परोसने के लिए एक हिंदू भगवान के नाम का “दुरुपयोग” करने का आरोप लगाया गया.”

यह भी पढ़ें: NTA ने जारी किया NEET UG का नया रिजल्ट, घट गए टॉपर, यहां देखें नाम-वार लिस्ट

…तो यह दिन नहीं देखना पड़ता: वसीम अहमद

वसीम अहमद ने अब अपना ढाबा बंद कर दिया है. वो कहते हैं, “यह सब मेरे साथ शुरू हुआ. अगर प्रशासन ने उस समय कार्रवाई की होती और कानूनी पक्ष का साथ दिया होता, तो हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता.आज यह फैशन बन गया है कि अगर आपको मशहूर होना है, तो मुस्लिम को निशाना बनाओ. हालांकि, अब जब सुप्रीम कोर्ट ने नेमप्लेट वाले योगी सरकार के आदेश पर स्टे लगा दिया है, तो मुजफ्फरनगर के कुछ रेस्तरां और भोजनालयों के मालिक खुश हैं.

फल की ठेली और नींबू पानी वाले ने क्या कहा?

मुजफ्फरनगर के फल की ठेली वाले मांगा कुमार कहते हैं, “मैं दलित हूं. अगर यह जारी रहा, तो कुछ लोग मुझसे केले और अमरूद खरीदना बंद कर देंगे. इस सबका कोई अंत है क्या?” मांगा ने कहा,  “मैंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में सुना है, लेकिन पुलिस के बारे में आप कभी नहीं जान सकते. वे कभी भी लाठी लेकर आ सकते हैं.”

वहीं नींबू पानी बेचने वाले प्रदीप कुमार कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से पुलिस का आना-जाना कम हो गया है, लेकिन डर बना हुआ है. ग्राहक भी किसी अनहोनी के डर से दूर रहते हैं. इसलिए, कई लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर दी हैं. क्या कोई उनके बारे में बात कर रहा है?”

शीरमाल की दुकान वाले फरमान अली ने क्या कहा?

मुजफ्फरनगर से कुछ दूर शीरमाल की दुकान चला रहे फरमान अली ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “उम्मीद है कि कांवरिए उनके नाम से परे देखेंगे. वे कहते हैं कि पिछले साल तक, कई लोग उनकी दुकान पर आते थे, जिसे वे अब 17 साल से चला रहे हैं, खासकर मीठी रोटी की तलाश में. “वे पुकारते थे, ‘ऐ भोले! क्या बनाए हो?’

फरमान अली ने कहा, “बिक्री पहले की तुलना में दस गुना कम हो गई है. पहले मैं कांवर यात्रा के दौरान एक दिन में करीब सौ शीरमल बेचता था… अब मैं 10 बेचता हूं… पिछले साल तक मैं कांवर के दौरान शाकाहारी भोजन और नाश्ता बेचने वाली एक रेहड़ी भी चलाता था. लेकिन अब कौन लड़ाई-झगड़े में पड़ने की हिम्मत करेगा?” अली कहते हैं कि उन्होंने अपनी दुकान के होर्डिंग से अपना नाम नहीं हटाया है, क्योंकि किसी ने उन्हें कुछ नहीं बताया. फिर भी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है. “लोगों में कोई नफरत नहीं है, यह उनके बीच फैल रही है. जाहिर है, उन्हें सरकार और प्रशासन का समर्थन प्राप्त है.”

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में NGO एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की तरफ से चुनौती दी गई थी. इस मामले में जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने सुनवाई की.

ज़रूर पढ़ें