हिन्दी, हिन्दू और विकास…साउथ में कहां चूक रही है BJP? पीएम के निशाने पर ‘मिशन 400’
Lok Sabha Election 2024: क्या पीएम मोदी की लोकप्रियता बीजेपी को दक्षिण में अधिक सीटें जीतने में मदद कर सकती है? अभी के राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए यह सवाल काफी बड़ा है. पार्टी को केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अधिक समर्थन की आवश्यकता है. केरल में वाम दल समर्थित कांग्रेस शासन है, जबकि तमिलनाडु में DMK का शासन है. वहीं अगर कर्नाटक की बात करें तो JDS, कांग्रेस और बीजेपी ने बारी-बारी से सत्ता संभाली है. अब जबकि लोकसभा चुनाव नजदीक है तो पीएम मोदी ने खुद ही भाजपा की कमान संभाल ली है. 27 फरवरी से दो दिनों तक राज्य केरल और तमिलनाडु के दौरे पर थे. इसके अलावा आज पीएम महाराष्ट्र के दौरे हैं.
दक्षिण में बीजेपी के पास बड़े नेताओं की कमी
पीएम मोदी ने ऐसे समय में दक्षिण भारत की ओर रुख किया है, जब देश में लोकसभा चुनाव की तैयारी चल रही है. दक्षिण का किला ऐसा रहा है, जिसे अभी तक बीजेपी पूरी तरह से भेदने में सफल नहीं हो पाई है. आइये विस्तार से बताते हैं कि क्यों दक्षिण को भेदने में बीजेपी पिछड़ रही है?
बता दें कि दक्षिण भारत में वोटरों को प्रभावित करने वाले प्राथमिक कारण जाति, धन शक्ति, विचारधारा, सिनेमा और शराब हैं. तमिलनाडु में एम. करुणानिधि, एमजीआर और जयललिता जैसी राजनीतिक हस्तियों का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है. संयुक्त आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव ने अहम भूमिका निभाई. लेकिन दक्षिणी राज्यों में बीजेपी के पास बड़े नेताओं की कमी है.
सीट बढ़ाने की कोशिश में बीजेपी
आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपनी सीटें बढ़ाने की कोशिश में है. हाल ही में पीएम मोदी ने दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, केरल और लक्षद्वीप में 2024 के चुनावों के लिए अभियान शुरू किया. इसके साथ कई बड़ी परियोजनाओं का उद्घाटन भी हुआ. भाजपा अपने संसाधनों और संगठनात्मक ताकत का उपयोग कर रही है और लगभग 40 केंद्रीय मंत्रियों की टीम को स्थिति का आकलन करने का काम दिया गया है.
2019 में दक्षिण क्षेत्र की 130 सीटों में से भाजपा को 29 सीटें मिलीं. इसमें कर्नाटक की 25 और तेलंगाना की 4 सीटें शामिल हैं. हालांकि, वे पिछले साल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से कर्नाटक हार गए. अन्नाद्रमुक दक्षिण में बीजेपी की अहम सहयोगी थी, लेकिन तीन महीने पहले उन्होंने अपना गठबंधन खत्म कर लिया. तब से किसी भी पक्ष ने सुलह की कोशिश नहीं की है. दक्षिणी राज्यों की अलग सांस्कृतिक पहचान है. केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की मजबूत उपस्थिति है, जबकि YSRCP वर्तमान में आंध्र प्रदेश पर शासन कर रही है. हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस तेलंगाना में विजयी हुई.
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धारणा को बदलने के प्रयास में पीएम
तमिलनाडु में द्रविड़ पार्टियां हिंदी के प्रयोग का विरोध करती हैं. उत्तर और दक्षिण भारत के बीच खाई बढ़ती जा रही है. पीएम मोदी इस धारणा को बदलने का प्रयास कर रहे हैं कि भाजपा पार्टी दक्षिण भारत की संस्कृति से जुड़ी नहीं है.
बता दें कि आंध्र प्रदेश में रेड्डी और कम्मा लंबे समय से प्रतिद्वंदी हैं. कापू अपनी राजनीतिक उपस्थिति स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि एक समय प्रभुत्व रखने वाले ब्राह्मण अपना प्रभाव खो चुके हैं. केरल में कम्युनिस्टों और कम्युनिस्ट-विरोधियों के बीच राजनीतिक गठबंधन बनते रहे हैं.
तेलंगाना में रेड्डी वरिष्ठ पदों पर हैं और सभी राजनीतिक दलों पर हावी हैं. दक्षिण भारत में धर्म कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा नहीं है. इस बार के लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी गठबंधन की तलाश में है और अपने पूर्व सहयोगियों का समर्थन हासिल करना चाहती है. यदि बीजेपी ऐसा करने में सफल हो जाती है तो इस बार दक्षिण का दुर्ग मजबूत हो जाएगा.