ऐसे ही नहीं बंगाल में अकेले चुनाव लड़ रही TMC, जानिए कांग्रेस से गठबंधन न करने के पीछे ‘दीदी’ का नंबर गेम

पिछले दो दशकों के दौरान पश्चिम बंगाल का राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल गया है. सबसे पहले 1998 में बनी टीएमसी के कारण राज्य में वामपंथ का प्रभाव कम हुआ और अब बीजेपी के उदय के कारण कांग्रेस और वाम दोनों कमजोर दिखाई दे रही है.
mamata banerjee

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Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव की लड़ाई अब पश्चिम बंगाल में आकार लेने लगी है. बंगाल की 42 सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई की संभावना जताई गई है. भाजपा ने अब तक 20 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं, टीएमसी ने सभी 42 सीटों की घोषणा कर दी है. इस बीच, सहयोगी दल वाम मोर्चा और कांग्रेस संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वाम दल ने पहले ही कांग्रेस को झटका देते हुए 16 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.

दो दशकों में बदला बंगाल का राजनीतिक परिदृश्य

बता दें कि पिछले दो दशकों के दौरान पश्चिम बंगाल का राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल गया है. सबसे पहले 1998 में बनी टीएमसी के कारण राज्य में वामपंथ का प्रभाव कम हुआ और अब बीजेपी के उदय के कारण कांग्रेस और वाम दोनों कमजोर दिखाई दे रही है. वहीं 2011 में सत्ता में आई टीएमसी ने 2009 के बाद से राज्य में सबसे अधिक लोकसभा सीटें जीती हैं.

इतना ही नहीं ममता बनर्जी की पार्टी ने विधानसभा में भी दबदबा बनाए रखा है. टीएमसी ने 2016 में 295 में से 211 सीटें और 2021 में 215 सीटें जीती हैं. इन सालों में कांग्रेस और लेफ्ट लगातार गिर रहे हैं. 2016 में क्रमशः 44 और 33 सीटें थीं, जो 2021 में एक भी नहीं रह गईं. इसका फायदा अगर किसी पार्टी को हुआ है तो वो है भाजपा. पार्टी 2016 में 3 सीटों से बढ़कर 2021 में 77 तक पहुंच गई है.

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लोकसभा में भी आगे रही TMC

हालांकि, लोकसभा चुनाव में भी ‘दीदी’ सबसे आगे रहने में कामयाब रही है, लेकिन बीजेपी के ठोस प्रयास का असर दिख रहा है. उदाहरण के लिए, 2014 के नरेंद्र मोदी लहर चुनाव में जब भाजपा भारी बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में आई, तो टीएमसी ने बंगाल में 42 में से 34 सीटें जीतीं. उस समय कांग्रेस ने 4 सीटें जीती थीं, और लेफ्ट और बीजेपी ने 2-2 सीटें जीती थीं.

लेकिन 2019 तक, भाजपा ने अंतर को कम कर दिया और बंगाल में 18 लोकसभा सीटें जीत लीं, जो टीएमसी की 22 से केवल 4 सीटें कम थीं. कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई और वाम दल एक भी सीट नहीं जीत पाए. यही कारण है कि ममता ने इस बार शुरुआती कोशिश के बाद कांग्रेस के साथ नहीं जाना ही उचित समझा. ममता दीदी जान गईं कि राज्य में कांग्रेस का जनाधार धीरे-धीरे गिर रहा है.

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