“जब तक पूरे ना हो सात फेरे, तब तक दुलहिन नहीं दूल्हे की…” Hindu Marriage पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला, आपको जानना बेहद ज़रूरी

Supreme Court on Hindu Marriage: कोर्ट ने 19 अप्रैल के एक आदेश में युवा पुरुषों और महिलाओं से आग्रह किया कि वह विवाह समारोह के बारे में गहराई से सोचे कि और भारतीय समाज में यह कितने पवित्र हैं.
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"जब तक पूरे ना हो सात फेरे, तब तक दुलहिन नहीं दूल्हे की..." Hindu Marriage पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला, आपको जानना बेहद ज़रूरी

Supreme Court on Hindu Marriage: देश के सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 को लेकर एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक ‘संस्कार’ है और इसे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत मान्यता नहीं दी जा सकती, जब तक कि इसे सही रीति रिवाज से समारोह के साथ नहीं किया जाता. साथ ही कोर्ट ने यह भी टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, जिसे भारतीय समाज में प्रमुख दर्जा दिया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 19 अप्रैल के एक आदेश में युवा पुरुषों और महिलाओं से आग्रह किया कि विवाह समारोह के बारे में गहराई से सोचे कि और भारतीय समाज में यह कितने पवित्र हैं.

‘विवाह का मतलब सिर्फ नाच-गाना और भोज नहीं’

फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि हिंदू रीति से विवाह का मतलब सिर्फ नाच-गाना और दावत का आयोजन करना ही नहीं होता है या यह अनुचित दबाव डालकर दहेज और उपहारों की मांग करने का भी अवसर नहीं है. अगर ऐसा होता है तो आपराधिक कार्रवाई हो सकती है. पीठ ने आगे कहा, “विवाह कोई व्यावसायिक लेन-देन नहीं है. यह एक पवित्र समारोह है, जिसे पुरुष और महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए मनाया जाता है, जो भविष्य में भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंदू विवाह दो परिवार की इकाई को मजबूत करते हैं और भाईचारे की भावना को मजबूत करते हैं. विवाह पवित्र है, क्योंकि यह दो व्यक्तियों के बीच आजीवन सहमति वाला और स्वस्थ मिलन प्रदान करता है.

‘हिंदू विवाह दो परिवार की इकाई को मजबूत करते हैं’

कोर्ट ने कहा कि विवाह एक ऐसा समारोह माना जाता है जो व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करता है. हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि जब तक विवाह उचित रीति-रिवाजों के साथ नहीं किया जाता, तब तक इसे अधिनियम की धारा 7(1) के अनुसार सही नहीं कहा जा सकता है. कोर्ट ने आगे कहा कि इसके अलावा, धारा 7(2) में कहा गया है कि जहां ऐसे संस्कारों और समारोहों में सप्तपदी शामिल है, यानी पवित्र अग्नि के सामने दूल्हा और दुल्हन सात फेरे लेते समय सातवां फेरा शादी को पूर्ण और बाध्यकारी बनाता है. इसलिए, हिंदू विवाह के अनुष्ठान के लिए लागू रीति-रिवाजों के अनुसार होने चाहिए.

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एक महिला की तलाक याचिका पर हुई सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट एक महिला की तलाक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बिहार के मुजफ्फरपुर की एक अदालत से झारखंड के रांची की एक अदालत में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी. याचिका के लंबित रहने के दौरान, महिला ने और उनके पूर्व साथी ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत एक संयुक्त आवेदन दायर करके विवाद को सुलझाने का फैसला किया. दोनों ही ट्रेंड कमर्शियल पायलटों की सगाई 7 मार्च, 2021 को होने वाली थी. बाद में उन्होंने दावा किया कि 7 जुलाई, 2021 को उनकी शादी हो गई. उन्होंने वैदिक जनकल्याण समिति से एक मैरिज सर्टिफिकेट लेकर, इसी प्रमाण पत्र के आधार पर उन्होंने यूपी विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत मैरिज सर्टिफिकेट भी ले लिया. बाद में उनके परिवारों ने हिंदू संस्कार के अनुसार 25 अक्टूबर, 2022 को विवाह समारोह की तारीख तय की. इस बीच आपसी मतभेद हो गए और मामला कोर्ट तक पहुंच गया.

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