बावड़ी, मंदिर और मूर्तियां…संभल के सीने में क्या-क्या? 7वें दिन भी जारी है खुदाई

इस बावड़ी का निर्माण बिलारी सहसपुर के राजा चंद्र विजय सिंह के शासनकाल में हुआ था. बावड़ी की देखरेख और इसके उपयोग का जिम्मा रानी सुरेंद्र बाला के पास था, जिन्हें यह रियासत के मैनेजर ने रहने के लिए दी थी.
Sambhal Ki Bawadi

Sambhal Ki Bawadi

Sambhal Ki Bawadi: उत्तर प्रदेश के संभल जिले के चंदौसी में स्थित ऐतिहासिक रानी की बावड़ी की खुदाई का काम इन दिनों पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है. इस बावड़ी की खुदाई पिछले 7 दिनों से जारी है और अब तक कई महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं. इस बावड़ी को लेकर ASI की टीम का सर्वे भी जारी है. टीम अभी खुदाई स्थल पर पहुंचकर गहराई माप रही है.

क्या है रानी की बावड़ी का इतिहास?

इस बावड़ी को लगभग 150 साल पहले बनाया गया था. इस बावड़ी का मुख्य उद्देश्य पानी संग्रह करना था, लेकिन इसे सैनिकों के विश्राम स्थल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था. बावड़ी के अंदर की दीवारों में आज भी नमी दिख रही है, जो यह बताता है कि पहले इस स्थान पर पानी रहता था. बावड़ी के आसपास पुरानी पत्थरों से बनी संरचनाएं और सुरंगनुमा रास्ते भी मौजूद हैं.

इस बावड़ी का निर्माण बिलारी सहसपुर के राजा चंद्र विजय सिंह के शासनकाल में हुआ था. बावड़ी की देखरेख और इसके उपयोग का जिम्मा रानी सुरेंद्र बाला के पास था, जिन्हें यह रियासत के मैनेजर ने रहने के लिए दी थी. शाही परिवार की इस संपत्ति के बारे में और अधिक जानने के लिए शिप्रा बाला, जो रानी सुरेंद्र बाला की पोती हैं, ने भी कुछ अहम बातें साझा कीं.

क्या हुआ अब तक?

सात दिन से जारी खुदाई में ASI की टीम ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया. शुक्रवार को दूसरी बार ASI टीम ने बावड़ी की गहराई मापने के लिए फीता डाला और पाया कि यह बावड़ी तीन मंजिला हो सकती है. खुदाई के दौरान, पहले ही मंजिल का तल मिल चुका है और वहां मौजूद गलियारों की सफाई की जा रही है. टीम ने इन गलियारों का निरीक्षण किया और इनमें कई ऐतिहासिक संरचनाएं और सुरंगें भी पाई गईं.

गुरुवार को भी खुदाई का काम जारी था, जिसमें पहली मंजिल के एक हिस्से का पूरा फर्श साफ कर दिया गया था. इस काम में दिनभर की मेहनत के बाद, पहली मंजिल के गलियारों में मौजूद मिट्टी को हटा दिया गया, और अब वहां का दृश्य पहले से काफी साफ हो चुका है. इसके अलावा, बावड़ी में उतरने वाली सीढ़ियों के सामने एक कुआं भी देखा गया है.

यह बावड़ी क्यों है खास?

रानी की बावड़ी का महत्व केवल इसके पानी संग्रहण या सैनिकों के विश्राम स्थल के रूप में नहीं है, बल्कि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी यह महत्वपूर्ण है. यह बावड़ी कई दशकों से मिट्टी और कचरे के ढेर में दबी हुई थी, लेकिन अब जब इसका पर्दाफाश हो रहा है, तो यह क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहर के रूप में सामने आ रही है.

आशंका जताई जा रही है कि यह बावड़ी तीन मंजिला हो सकती है, और यदि ऐसा होता है तो यह एक बड़ी खोज होगी. यह बावड़ी लगभग 150 साल पुरानी मानी जाती है और उस समय के दौरान इसका इस्तेमाल पानी स्टोर करने के अलावा अन्य कार्यों के लिए भी किया जाता था. इसके निर्माण के समय उस समय की वास्तुकला और इंजीनियरिंग के तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इस बावड़ी को बेहद खास तरीके से बनाया गया था.

यह भी पढ़ें: Manmohan Singh के निधन पर Madhya Pradesh में शोक की लहर, निरस्त हुए CM मोहन यादव के सभी कार्यक्रम

कौन थे इस बावड़ी के मालिक?

इस बावड़ी से जुड़ी एक दिलचस्प जानकारी यह है कि इसे पहले बिलारी सहसपुर के राजा चंद्र विजय सिंह की संपत्ति माना जाता था. राजा चंद्र विजय सिंह के समय में रानी सुरेंद्र बाला को यह बावड़ी रहने के लिए दी गई थी. रानी की पोती शिप्रा बाला ने बताया कि उनके दादा ने इस संपत्ति को कुछ समय बाद अनेजा को बेच दिया था, जो बाद में इस संपत्ति को कई मुस्लिम परिवारों को बेचते गए. इस बावड़ी का इतिहास अब तक विभिन्न स्वामित्वों में बदल चुका है, लेकिन यह आज भी अपने ऐतिहासिक महत्व को बनाए रखे हुए है.

अब क्या होगा?

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में क्या और नए खुलासे होते हैं. एएसआई की टीम ने इस स्थल का पूरा दस्तावेजीकरण करना शुरू कर दिया है, और इस बावड़ी की खुदाई का काम धीरे-धीरे पूरा हो रहा है. यह संभावना जताई जा रही है कि खुदाई के अगले चरणों में और भी महत्वपूर्ण संरचनाओं का पता चल सकता है.

साथ ही, इस बावड़ी से जुड़ी और जानकारी जैसे पुराने समय के धार्मिक स्थल, मंदिरों और अन्य सांस्कृतिक धरोहरों के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है, जो न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि पूरे देश के इतिहास के लिए अनमोल धरोहर साबित हो सकती है.

ज़रूर पढ़ें