कैश, तबादला और अफवाहें… जस्टिस वर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा कदम, फायर ब्रिगेड के बयान में भी ‘झोल’!
जस्टिस यशवंत वर्मा
Justice Yashwant Varma Case: दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा इन दिनों सुर्खियों में हैं. 14 मार्च की रात उनके सरकारी बंगले में आग लग गई थी. वर्मा जी उस वक्त घर पर नहीं थे, उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड से मदद मांगी, और फायर ब्रिगेड की टीम ने मौके पर पहुंचकर आग बुझाई. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि बंगले में भारी मात्रा में कैश भी मिला था. हालांकि, इस पर फायर ब्रिगेड के प्रमुख अतुल गर्ग ने साफ किया कि उनके कर्मियों को आग बुझाने के दौरान कोई नकदी नहीं मिली.
इसी बीच, 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की बैठक हुई, जिसमें जस्टिस वर्मा के इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर करने का प्रस्ताव आया. इस प्रस्ताव के बाद मीडिया में यह सवाल उठने लगा कि क्या उनका ट्रांसफर आग और कैश की रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है.
जांच और ट्रांसफर अलग-अलग प्रक्रिया: सुप्रीम कोर्ट
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले पर स्पष्टीकरण दिया है. एससी ने कहा कि जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर और उनके घर में आग लगने की घटना दो अलग-अलग मुद्दे हैं. कोर्ट ने यह भी बताया कि 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर करने का प्रस्ताव किया था, जो पूरी तरह से एक अलग प्रक्रिया है. इसके बाद इस प्रस्ताव पर विभिन्न जजों और हाई कोर्ट के प्रमुखों से राय ली जा रही है, और उनकी प्रतिक्रिया के बाद कॉलेजियम इस पर अंतिम निर्णय लेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जस्टिस वर्मा के बंगले की घटना से जुड़े अफवाहों को खारिज किया जा रहा है, और इस पर दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने इन-हाउस जांच शुरू कर दी है.
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इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और कांग्रेस का विरोध
इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर का विरोध करते हुए कहा कि उन्हें इलाहाबाद भेजने का फैसला हैरान करने वाला है. वहीं, कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को उठाया और कहा कि इस मामले को महज ट्रांसफर के सवाल से दबाया नहीं जा सकता. यह जरूरी है कि यह पता लगाया जाए कि कैश किसका था और यह कैसे मिला.
न्यायपालिका में विश्वास बनाए रखना जरूरी
इस मामले पर कानूनी विशेषज्ञों की भी प्रतिक्रियाएं आईं. कुछ ने जस्टिस वर्मा के इस्तीफे की मांग की, तो कुछ ने सुप्रीम कोर्ट से मामले की पूरी जांच करने की अपील की. वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को आंतरिक जांच के जरिए सभी तथ्यों का पता लगाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में जजों के खिलाफ आरोपों से निपटने के लिए आंतरिक जांच का एक ठोस सिस्टम है, जिसके तहत अगर कोई जज दोषी पाया जाता है, तो उसे महाभियोग के लिए संसद में भेजा जा सकता है, हालांकि अब तक इस प्रकार का कोई महाभियोग नहीं हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर और आग की घटना को अलग-अलग मुद्दे बताते हुए इस मामले पर जांच शुरू कर दी है. अब देखना होगा कि आगे क्या कार्रवाई होती है और क्या यह मामला न्यायपालिका के विश्वास को प्रभावित करेगा या नहीं.