सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सिर्फ आरोपी होने पर नहीं गिरा सकते किसी का घर, ‘बुलडोज़र एक्शन’ पर लग गई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक लगा दी है. शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि सिर्फ किसी व्यक्ति के आरोपी होने की वजह से उसकी संपत्ति पर बुलडोज़र चलाना सही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि किसी के घर को तोड़ने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक लगा दी है. शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि सिर्फ किसी व्यक्ति के आरोपी होने की वजह से उसकी संपत्ति पर बुलडोज़र चलाना सही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि किसी के घर को तोड़ने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है, और सिर्फ आरोपी होने के कारण किसी का घर गिराना अराजकता को बढ़ावा देने जैसा होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कार्रवाई से पहले किसी भी हाल में 15 दिनों का नोटिस देना होगा. इसके बाद ही कार्रवाई किया जा सकता है.

मनमानी तरीके से नहीं कर सकते कार्रवाई- सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि हमने देखा है कि आरोपी के भी कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय हैं, राज्य और अधिकारी कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आरोपी या दोषियों के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकते हैं, जब किसी अधिकारी को मनमानी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है तो इससे निपटने के लिए संस्थागत तंत्र होना चाहिए. मुआवजा तो दिया ही जा सकता है, सत्ता के गलत इस्तेमाल के लिए ऐसे अधिकारी को बख्शा नहीं जा सकता. कानून को ताक पर रखकर किया गया बुलडोजर एक्शन असंवैधानिक है.

यह फैसला 17 सितंबर को दी गई अंतरिम रोक के बाद आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक लगाई थी. अब, इस फैसले के बाद ही बुलडोज़र कार्रवाई की वैधता तय की जा सकेगी. इस मामले में कई राज्यों द्वारा दाखिल की गई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, जिसमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी शामिल था. सुप्रीम कोर्ट की बेंच का नेतृत्व जस्टिस बी.आर. गवई कर रहे थे.

यूपी सरकार को ‘सुप्रीम’ फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को भी फटकार लगाई थी. अदालत ने कहा था कि यह कैसे हो सकता है कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के और बिना परिवार को घर खाली करने का समय दिए, घरों को गिरा दिया जाए. कोर्ट ने यूपी सरकार पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था, और यह आदेश दिया कि निजी संपत्तियों के मामले में किसी भी कार्रवाई को कानून के दायरे में रहकर ही अंजाम दिया जाना चाहिए.

अधूरा इंसाफ -मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

इसके अलावा, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस फैसले को अधूरा इंसाफ बताया है. उनका कहना था कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने यह महसूस किया है कि कुछ खास समुदाय के लोगों के खिलाफ यह कार्रवाई की गई, तो 25 लाख रुपये का मुआवजा नाकाफी है. बोर्ड ने यह भी कहा कि इस कार्रवाई में शामिल अधिकारियों के खिलाफ भी उचित कदम उठाए जाने चाहिए. इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस बात को स्थापित करता है कि कानून का पालन करना हर नागरिक का अधिकार है और किसी भी स्थिति में बिना न्यायिक प्रक्रिया के किसी की संपत्ति पर हमला नहीं किया जा सकता.

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