भारत में क्यों किसानों से ज्यादा खुदकुशी कर रहे हैं बच्चे? डरा रहे हैं ये आंकड़े

IC-3 रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र में सबसे अधिक छात्र आत्महत्याएं कर रहे हैं. इसके बाद तमिलनाडु में 11 प्रतिशत है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी चिंताजनक आंकड़े हैं, क्योंकि एमपी में 10 प्रतिशत और यूपी में 8 प्रतिशत छात्र आत्महत्या कर रहे हैं.
प्रतीकात्मक तस्वीर

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Student Suicide: राजस्थान के शिक्षा केंद्र कोटा से छात्रों की आत्महत्या की खबरें आम हो गई हैं. पिछले साल 28 छात्रों के आत्महत्या किए जाने के बाद से इस बारे में बहुत कुछ कहा गया है. कोटा हमेशा से ही छात्रों की आत्महत्याओं के लिए चर्चा में रहा है, लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों पर आधारित एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में छात्रों की आत्महत्याओं की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई है. ये आंकड़े अब डराने लगे हैं. जिस रफ्तार से छात्र सुसाइड कर रहे हैं उस रफ्तार से तो देश की आबादी भी नहीं बढ़ रही है.

आंकड़ों के अनुसार, छात्रों की आत्महत्या के मामलों की बात करें तो कोटा 10वें स्थान पर है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि छात्रों की आत्महत्याएं जनसंख्या वृद्धि दर से आगे निकल रही हैं. दुनिया भर के हाई स्कूलों को सहायता प्रदान करने वाली संस्था IC 3 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 और 2022 में छात्रों में आत्महत्या की दर में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वर्ष 2022 में 13 हजार 44 छात्रों की आत्महत्या की रिपोर्ट दर्ज की गई थी, जबकि 2021 में यह संख्या 13 हजार 89 थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में छात्र आत्महत्याओं का ग्राफ बहुत तेजी से बढ़ा है.

क्या कहते हैं आंकड़े?

आईसी-3 की रिपोर्ट में कहा गया है, “पिछले दो दशकों में छात्र आत्महत्याओं में 4 फीसदी सालाना वृद्धि हुई है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है. 2022 में कुल छात्र आत्महत्याओं में छात्रों की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत थी. 2021 से 2022 के बीच छात्र आत्महत्याओं में 6 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि महिला छात्र आत्महत्याओं में 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

महाराष्ट्र में तेजी से सुसाइड कर रहे हैं बच्चे

IC-3 रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र में सबसे अधिक छात्र आत्महत्याएं कर रहे हैं. इसके बाद तमिलनाडु में 11 प्रतिशत है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी चिंताजनक आंकड़े हैं, क्योंकि एमपी में 10 प्रतिशत और यूपी में 8 प्रतिशत छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. झारखंड में कुल आत्महत्याओं में से 6 प्रतिशत छात्र हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के आधार पर, रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कुल आत्महत्या दर में सालाना 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि छात्र आत्महत्या दर में लगभग 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

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आत्महत्या क्यों करते हैं छात्र?

इसके पीछे कई जटिल कारण हैं, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, शैक्षणिक दबाव, सामाजिक-आर्थिक समस्याएं, प्रेम संबंधों में असफलता, नशे की लत और घरेलू हिंसा शामिल हैं. भारत में युवाओं पर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बोझ बहुत ज़्यादा है, लेकिन उनमें से ज़्यादातर इसका इलाज नहीं करवा पाते. परीक्षा में सफल होने का अत्यधिक दबाव, माता-पिता और शिक्षकों की अपेक्षाएं और असफलता का डर युवाओं को आत्महत्या की ओर धकेल सकता है. युवाओं में इंटरनेट के इस्तेमाल में की भी आत्महत्या में एक बड़ी भूमिका निभाती है. कुछ अन्य कारकों में साइबरबुलिंग, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और सामाजिक मूल्यों में गिरावट शामिल हो सकती है.

ऐसे मामलों को कैसे रोका जा सकता है?

युवाओं को आत्महत्या से रोकने के लिए सबसे पहले उनके मानसिक मुद्दों को शुरुआती चरण में ही पहचानना होगा और अनुकूल माहौल में उनकी देखभाल के लिए पर्याप्त प्रावधान होने चाहिए. इस प्रवृत्ति को रोकने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिए सुलभ बनाना और उन्हें सस्ती दरों पर उपलब्ध कराना भी ज़रूरी है. परीक्षाओं में सफलता के दबाव को कम करने की ज़रूरत है और छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए.

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