विरोध, मांग और संविधान…वक्फ कानून पर Supreme Court में सुनवाई क्यों? समझिए सबकुछ

सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई इसलिए अहम है क्योंकि याचिकाकर्ताओं को साबित करना होगा कि यह कानून संविधान की बुनियाद को कमजोर करता है. अगर वे यह साबित कर देते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट कानून पर रोक लगा सकता है या उसे पूरी तरह रद्द कर सकता है. कोर्ट यह भी देखेगा कि क्या यह कानून वाकई किसी के मौलिक अधिकारों का हनन करता है.
Supreme Court

प्रतीकात्मक तस्वीर

Waqf Law: देश की सर्वोच्च अदालत में आज एक ऐसे मामले की सुनवाई होने जा रही है, जो न सिर्फ कानूनी हलकों में, बल्कि आम लोगों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है. बात हो रही है वक्फ संशोधन कानून 2025 की, जिसने संसद से लेकर सड़कों तक हंगामा मचा रखा है. सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ करीब 10 याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है, और अगर दूसरे धार्मिक संगठनों की याचिकाओं को जोड़ा जाए, तो यह आंकड़ा 70 तक पहुंच जाता है. लेकिन आखिर यह वक्फ कानून है क्या? क्यों इसे लेकर इतना बवाल मचा है? और सुप्रीम कोर्ट में क्या हो रहा है? आइए, इस पूरे मामले को आसान भाषा में समझते हैं.

आखिर है क्या ये वक्फ कानून?

वक्फ का मतलब है ऐसी जमीन या संपत्ति, जो मुस्लिम समुदाय धार्मिक या सामाजिक कार्यों, जैसे मस्जिद, कब्रिस्तान, या गरीबों की मदद के लिए दान करता है. इन संपत्तियों की देखरेख वक्फ बोर्ड करता है. पुराने कानून में अगर कोई जमीन लंबे समय से वक्फ के काम में इस्तेमाल हो रही थी, तो उसे वक्फ की संपत्ति मान लिया जाता था, भले ही कागजात पूरे न हों. लेकिन नए कानून ने इस नियम को हटा दिया है. अब यह तय करना कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है और कौन सी नहीं, जिला कलेक्टर के हाथ में होगा, न कि वक्फ ट्रिब्यूनल के. यही बात विवाद की जड़ है.

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संसद से सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंचा मामला?

4 अप्रैल 2025 को संसद ने वक्फ संशोधन बिल पास किया, और अगले ही दिन, 5 अप्रैल को राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी. इसके बाद से ही देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने इसे अपने अधिकारों पर हमला बताया. AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी, और RJD सांसद मनोज झा जैसे कई बड़े नामों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इनका कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय की स्वायत्तता को खत्म करेगा और सरकार को वक्फ संपत्तियों पर अनुचित नियंत्रण देगा.

वहीं, दूसरी तरफ चार NDA शासित राज्य इस कानून के समर्थन में उतर आए हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें रखी हैं कि यह कानून पारदर्शिता लाएगा और वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकेगा. अब सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट किसके पक्ष में फैसला सुनाएगा?

क्या है मुस्लिम समुदाय की आपत्तियां?

मुस्लिम समुदाय और संगठनों को इस कानून से पांच बड़ी दिक्कतें हैं:

सरकारी दखल बढ़ेगा: अब सरकार, यानी जिला कलेक्टर, तय करेगा कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है. पहले यह काम वक्फ बोर्ड और ट्रिब्यूनल करते थे.

पुराने नियम की छुट्टी: पहले अगर कोई जमीन लंबे समय से वक्फ के पास थी, तो उसे वक्फ मान लिया जाता था. अब बिना कागजात के संपत्ति को “संदिग्ध” माना जाएगा.

धर्म के अधिकारों पर चोट: कई लोगों का मानना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों को कमजोर करता है.

वक्फ बोर्ड की ताकत कम: नए कानून में वक्फ बोर्ड के अधिकारों को सीमित कर दिया गया है, जिसे समुदाय अपनी स्वायत्तता पर हमला मानता है.

संविधान का उल्लंघन? याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का हनन करता है, जो नागरिकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मांगने का हक देता है.

सुप्रीम कोर्ट में क्या हो रहा है?

सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई इसलिए अहम है क्योंकि याचिकाकर्ताओं को साबित करना होगा कि यह कानून संविधान की बुनियाद को कमजोर करता है. अगर वे यह साबित कर देते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट कानून पर रोक लगा सकता है या उसे पूरी तरह रद्द कर सकता है. कोर्ट यह भी देखेगा कि क्या यह कानून वाकई किसी के मौलिक अधिकारों का हनन करता है. दूसरी तरफ, सरकार और NDA शासित राज्यों का तर्क है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता लाएगा और उनके गलत इस्तेमाल को रोकेगा.

सदियों पुरानी है वक्फ की परंपरा

वक्फ की परंपरा सदियों पुरानी है. यह न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सामाजिक कार्यों के लिए भी महत्वपूर्ण है. देश में लाखों एकड़ जमीन वक्फ के नाम पर है, जिनमें मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान, और अनाथालय शामिल हैं. लेकिन कई बार इन संपत्तियों के गलत इस्तेमाल या अवैध कब्जे की शिकायतें भी सामने आती रही हैं. सरकार का कहना है कि नया कानून इन्हीं समस्याओं को हल करने के लिए लाया गया है. लेकिन विरोधियों का मानना है कि यह कानून समस्याएं हल करने के बजाय नई मुश्किलें खड़ी करेगा.

क्या होगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

यह सवाल हर किसी के मन में है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला न सिर्फ वक्फ कानून, बल्कि धार्मिक संगठनों और सरकार के बीच रिश्तों को भी प्रभावित करेगा. अगर कोर्ट याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला देता है, तो यह कानून रद्द हो सकता है. वहीं, अगर सरकार के तर्क को वजन मिलता है, तो यह कानून लागू रहेगा, और वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ जाएगा.

आम आदमी के लिए क्या मायने?

आप सोच रहे होंगे कि यह कानूनी जंग आम इंसान से कैसे जुड़ी है? दरअसल, यह मामला सिर्फ वक्फ संपत्तियों तक सीमित नहीं है. यह धार्मिक स्वायत्तता, संवैधानिक अधिकारों, और सरकार की भूमिका जैसे बड़े सवालों को छूता है. अगर सरकार को धार्मिक संपत्तियों पर ज्यादा नियंत्रण मिलता है, तो इसका असर दूसरे समुदायों और उनके संस्थानों पर भी पड़ सकता है.

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई न सिर्फ कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी अहम है. क्या सुप्रीम कोर्ट इस कानून को संवैधानिक मानेगा, या इसे रद्द कर देगा?

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