नीतीश कुमार की कुर्सी पर सवाल, ‘वक्फ बिल’ से बनेगा या बिगड़ेगा हाल?

बिहार में यादव, EBC (अति पिछड़ा वर्ग), और ऊंची जातियों के वोटर नीतीश का मजबूत आधार हैं. वक्फ बिल के बहाने अगर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण हुआ, तो बीजेपी और JDU मिलकर इन वोटों को अपने पाले में कर सकते हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश इसे 'प्रशासनिक सुधार' का नाम दे सकते हैं.
CM Nitish Kumar

बिहार के सीएम नीतीश कुमार

Bihar Election: बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं. इस बार का चुनाव कई बड़े मुद्दों को लेकर चर्चा में है, लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024. केंद्र सरकार ने इसे संसद में पेश किया है और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने इसका समर्थन कर दिया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह फैसला नीतीश के लिए फायदे का सौदा साबित होगा या उनकी सियासी जमीन खिसक जाएगी? साथ ही, बीजेपी, RJD, कांग्रेस और दूसरी पार्टियां इसे अपने फायदे के लिए कैसे भुनाएंगी? आइए, आसान भाषा में सबकुछ विस्तार से समझते हैं.

वक्फ बिल क्या है और क्यों मचा है बवाल?

सबसे पहले यह समझते हैं कि वक्फ बिल आखिर है क्या? वक्फ का मतलब होता है मुस्लिम समुदाय की वो संपत्ति, जो मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों या गरीबों की मदद के लिए दान की जाती है. वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों को संभालता है. लेकिन केंद्र सरकार ने वक्फ कानून में बदलाव का प्रस्ताव रखा है, जिसे वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 कहते हैं. इसमें कुछ बड़े बदलाव हैं.

गैर-मुस्लिमों की एंट्री: वक्फ बोर्ड में अब गैर-मुस्लिम सदस्य भी शामिल हो सकेंगे. मुस्लिम संगठन इसे अपने धार्मिक मामलों में दखल मान रहे हैं.

सरकार का कंट्रोल: वक्फ संपत्तियों के विवादों को सुलझाने का अधिकार अब सरकार के पास होगा. कई लोग इसे “संपत्ति पर कब्जे” की कोशिश बता रहे हैं.

सर्वे और रजिस्ट्रेशन: वक्फ संपत्तियों की जांच और पंजीकरण की प्रक्रिया सख्त होगी. कुछ संगठनों का कहना है कि इससे उनकी जमीन छिन सकती है. इसे और भी विस्तार से समझना चाहते हैं तो इस लिंक पर टीपिए और सही पते पर पहुंच जाइए.

बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 17-18% है. ये वोटर कई सीटों पर नतीजे तय करते हैं. ऐसे में वक्फ बिल एक भावनात्मक और सियासी मुद्दा बन गया है. मुस्लिम संगठन सड़कों पर उतर आए हैं और इसे ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ बता रहे हैं.

नीतीश कुमार का स्टैंड, साहस या गलती?

नीतीश कुमार की JDU ने वक्फ बिल का समर्थन किया है. नीतीश पिछले 20 साल से बिहार की सियासत में बड़े खिलाड़ी हैं और उनकी छवि ‘सुशासन बाबू’ की रही है. लेकिन इस बार उनका यह फैसला सवालों के घेरे में है. आइए देखते हैं कि यह उनके लिए फायदा देगा या नुकसान.

नीतीश का बीजेपी के साथ गठबंधन (NDA) उनकी सत्ता की रीढ़ है. 2024 लोकसभा चुनाव में JDU को 12 सीटें मिलीं और बीजेपी को 12. वक्फ बिल का समर्थन करके नीतीश बीजेपी को खुश रखना चाहते हैं. इससे चुनाव में सीटों का बंटवारा और फंडिंग में फायदा मिल सकता है.

दूसरी बात, बिहार में यादव, EBC (अति पिछड़ा वर्ग), और ऊंची जातियों के वोटर नीतीश का मजबूत आधार हैं. वक्फ बिल के बहाने अगर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण हुआ, तो बीजेपी और JDU मिलकर इन वोटों को अपने पाले में कर सकते हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश इसे ‘प्रशासनिक सुधार’ का नाम दे सकते हैं. उनका कहना है कि वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता जरूरी है. इससे उनकी ‘विकास पुरुष’ वाली इमेज को बल मिल सकता है. ये तो हो गई फायदे की बात, अब जरा नुकसान की बात भी कर लेते हैं.

मुस्लिम वोटर नाराज: बिहार में मुस्लिम वोटर ज्यादातर RJD और कांग्रेस को सपोर्ट करते हैं, लेकिन नीतीश को भी इसका कुछ हिस्सा मिलता रहा है. वक्फ बिल के समर्थन से यह वोट बैंक पूरी तरह खिसक सकता है. हाल ही में मुस्लिम संगठनों ने नीतीश की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार किया, जो खतरे की घंटी है.

विपक्ष का हमला: RJD के तेजस्वी यादव और कांग्रेस नीतीश को ‘मुस्लिम विरोधी’ और “बीजेपी का पिट्ठू” कहकर घेर रहे हैं. तेजस्वी ने कहा, “नीतीश चाचा अब बीजेपी की गोद में बैठ गए हैं.” यह नैरेटिव नीतीश की साख को नुकसान पहुंचा सकता है.

पार्टियां कैसे खेलेंगी अपना खेल?

बिहार की सियासत में हर पार्टी इस मुद्दे को अपने फायदे के लिए भुनाने की जुगत में है. बीजेपी वक्फ बिल को ‘पारदर्शिता और सुशासन’ का नाम दे रही है. पार्टी इसे विपक्ष के ‘तुष्टिकरण’ के खिलाफ हथियार बनाएगी. बिहार में बीजेपी का फोकस ऊंची जातियों (भूमिहार, ब्राह्मण) और गैर-यादव OBC वोटरों पर है. अगर यह मुद्दा हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का रूप ले लेगा, तो बीजेपी को फायदा होगा. लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर उसे नुकसान का डर भी है.

MY समीकरण के सहारे RJD

तेजस्वी यादव की RJD मुस्लिम और यादव (MY) वोटों की पार्टी मानी जाती है. तेजस्वी वक्फ बिल को ‘मुस्लिम संपत्ति पर हमला’ बताकर मुस्लिम वोटरों को गोलबंद करने की कोशिश करेंगे. 2024 लोकसभा चुनाव में RJD का वोट शेयर 22.1% तक पहुंचा था, जो 2019 के मुकाबले 6% ज्यादा है. इस मुद्दे से वे इसे और बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन गैर-मुस्लिम वोटरों को जोड़ना उनके लिए चुनौती है.

विपक्षी एकता की कोशिश में कांग्रेस

कांग्रेस इसे ‘संविधान और अल्पसंख्यक अधिकारों पर हमला’ बताकर RJD के साथ मिलकर विपक्षी गठबंधन (INDIA) को मजबूत करेगी. बिहार में उसका संगठन कमजोर है, लेकिन मुस्लिम वोटों का कुछ हिस्सा उसे मिल सकता है. हालांकि, हाल के दिनों में देखा गया है कि इंडी गठबंधन के नेता कांग्रेस और राहुल गांधी के विरोध में खड़े नजर आए. कांग्रेस की राह आसान नहीं है, लेकिन इस मुद्दे के सहारे पार्टी बिहार में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर सकती है.

वहीं, नीतीश की रणनीति होगी कि वे वक्फ बिल को ‘सुधार’ बताकर मुस्लिम वोटरों को मनाएं और बीजेपी के साथ गठबंधन को भी बचाएं. उनका फोकस EBC और गैर-मुस्लिम वोटों पर रहेगा. लेकिन मुस्लिम वोटों का खिसकना उनकी सबसे बड़ी चिंता है.

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मौके की तलाश में छोटी पार्टियां

असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और जीतन राम मांझी की HAM जैसी पार्टियां भी इस मुद्दे को भुनाएंगी. AIMIM मुस्लिम वोटरों को लुभाने की कोशिश करेगी, खासकर सीमांचल इलाके में. वहीं, HAM दलित और मुस्लिम वोटों को जोड़ने की कोशिश कर सकती है. लेकिन इनका प्रभाव सीमित सीटों तक ही रहेगा.

बिहार चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?

बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 40-50 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर नतीजे तय करते हैं, खासकर सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल इलाकों में. नीतीश के लिए इन सीटों पर नुकसान तय माना जा रहा है. 2020 विधानसभा चुनाव में JDU को 15.4% वोट मिले थे, लेकिन 2024 लोकसभा में यह घटकर 12% रह गया. वक्फ बिल से यह और कम हो सकता है. वहीं, RJD का वोट शेयर बढ़ सकता है.

अगर बीजेपी और JDU ध्रुवीकरण में कामयाब रहे, तो NDA को 130-140 सीटें मिल सकती हैं. लेकिन मुस्लिम वोटों का एकतरफा RJD की ओर जाना नीतीश के लिए मुश्किल खड़ी करेगा. 2020 में NDA को 125 सीटें मिली थीं, जिसमें JDU की 43 थीं. इस बार नीतीश की सीटें घट सकती हैं.

ये कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार के लिए वक्फ बिल का समर्थन एक जोखिम भरा दांव है. अगर वे मुस्लिम वोटरों को नाराज किए बिना गैर-मुस्लिम वोटों को जोड़ पाए, तो यह उनकी सियासी चालाकी का सबूत होगा. लेकिन मौजूदा माहौल में नुकसान की आशंका ज्यादा है. बीजेपी इसे हिंदू वोटों के लिए भुनाएगी, जबकि RJD और कांग्रेस मुस्लिम गुस्से को वोट में बदलने की कोशिश करेंगे.

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