Lok Sabha Election 2024: राजगढ़ से ताल ठोकते नजर आएंगे दिग्विजय सिंह, दो बार सांसद रहे बीजेपी के रोडमल नागर से होगा मुकाबला

Lok Sabha Election 2024: राजगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस की तरफ से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह मैदान में हैं. बीजेपी ने इस बार रोडमल नागर को चुनावी मैदान में उतारा है. 
rajgarh lok sabha seat

राजगढ़ लोकसभा सीट से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह मैदान में हैं.  बीजेपी ने इस बार रोडमल नागर को चुनावी मैदान में उतारा है. 

Lok Sabha Election 2024: मालवा रीजन का राजगढ़ राजस्थान की बॉर्डर पर स्थित एक महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है. ये सीट कांग्रेस का गढ़ रही है. इस सीट पर राघौगढ़ राजघराने का लंबे समय से प्रभुत्व रहा है. इस बार फिर से राघौगढ़ राजघराने से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह मैदान में हैं.  बीजेपी ने इस बार रोडमल नागर को चुनावी मैदान में उतारा है.

राजगढ़ सीट में तीन जिलों की आठ विधानसभा सीट शामिल हैं. गुना जिले की चचौरा, राघौगढ़; राजगढ़ जिले की नरसिंहगढ़, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, सारंगपुर और आगर मालवा जिले की सुसनेर विधानसभा सीट शामिल है. इन आठ विधानसभा सीट में से दो पर कांग्रेस का कब्जा है बाकी 6 पर बीजेपी के विधायक हैं.

राघौगढ़ सीट से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह विधायक हैं. वहीं आगर मालवा जिले की सुसनेर विधानसभा सीट से कांग्रेस से ही भैरों सिंह बापू विधायक हैं.

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी ने इस सीट से वर्तमान सांसद रोडमल नागर को अपना उम्मीदवार बनाया और कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को.

आइए जानते दोनों उम्मीदवारों के बारे में-

दिग्विजय सिंह – वर्तमान में राज्यसभा सांसद

एजुकेशन – बैचेलर ऑफ इंजीनियरिंग
संपत्ति- 50 करोड़ रुपये+
आपराधिक रिकॉर्ड – 17

राघौगढ़ राजघराने से जुड़े होने के कारण दिग्विजय सिंह को राजा के नाम से भी पुकारा जाता है. कांग्रेस के बड़े नामों से एक दिग्विजय सिंह की पहुंच एमपी से लेकर दिल्ली तक है. गांधी परिवार के करीबी होने के कारण कांग्रेस में पूछ-परख होती है. संगठन से लेकर विधानसभा और लोकसभा के साथ-साथा राज्यसभा तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले दिग्विजय इस बार फिर से लोकसभा के चुनाव में ताल ठोकते नजर आएंगे.

दिग्विजय सिंह की राजनीतिक जीवन में एंट्री छात्र जीवन से होती है. सबसे पहले साल 1969 से 1971 तक सिंह राघौगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष रहे. 1971 में कांग्रेस सदस्य बने. कांग्रेस ज्वॉइन करने के बाद सिंह को मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस का महासचिव बनाया गया. साल 1977 में पहली बार राघौगढ़ सीट से विधानसभा चुनाव जीता और विधानसभा पहुंचे. 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर से राघौगढ़ सीट से विधायक चुने गए.

ऐसा कहा जाता है कि 70 के दशक में सिंधिया राजघराने की रानी और जनसंघ की कद्दावर नेता विजयाराजे सिंधिया ने दिग्विजय सिंह को जनसंघ में शामिल होने के लिए ऑफर दिया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया. ये बहुत रोचक बात है कि राघौगढ़ विधानसभा सीट से दिग्विजय सिंह के पिता बलभद्र सिंह और बेटे जयवर्धन सिंह दोनों विधायक रह चुके हैं. दिग्विजय सिंह के पिता ने राघौगढ़ सीट से 1952 का चुनाव अखिल भारतीय हिंदू महासभा के टिकट से जीता था.

सातवीं विधानसभा के लिए चुने जाने के बाद दिग्विजय सिंह अर्जुन सिंह की सरकार में मंत्री रहे और कई विभागों की जिम्मेदारी निभाई. इन विभागों में सिंचाई, कृषि, मछली पालन और पशुपालन शामिल हैं. 1984 के लोकसभा चुनाव में राजगढ़ सीट से सांसद चुने गए. 9वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में जनसंघ के प्यारेलाल खंडेलवाल ने दिग्विजय सिंह को हरा दिया. लेकिन साल 1991 में हुए 10वीं लोकसभा के चुनाव में राजगढ़ सीट से प्यारेलाल खंडेलवाल को हराया.

10वीं लोकसभा का टर्म पूरा करने से पहले ही इस्तीफा देकर राघौगढ़ सीट से साल 1994 में विधानसभा उपचुनाव लड़ा. इससे पहले ही दिग्विजय सिंह एमपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे. इस तरह दिग्विजय सिंह एमपी के 14वें मुख्यमंत्री बने. 1998 में फिर से सिंह ने राघौगढ़ सीट से चुनाव जीता और एमपी में कांग्रेस की सरकार बनी. दोबारा मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. एमपी के दूसरे सबसे ज्यादा लंबे कार्यकाल वाले सीएम भी हैं.

साल 2003 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई लेकिन फिर भी राघौगढ़ सीट से दिग्विजय सिंह जीत गए. 2008 से 2014 के बीच दिग्विजय सिंह ने सामाजिक काम किए. 2014 में राज्यसभा के लिए चुने गए. साल 2020 में फिर से राज्यसभा सांसद के रूप में चुने गए. इस तरह हम देखें तो दिग्विजय सिंह का राजनीतिक सफर बहुत लंबा रहा है. इसमें 5 बार विधायक, 2 बार लोकसभा सांसद और 2 बार राज्यसभा सांसद रहे.

संगठन स्तर के अलग-अलग पदों पर काम करते हुए सिंह ने कांग्रेस के महासचिव तक के पद पर काम किया.

रोडमल नागर – राजगढ़ से दो बार के सांसद

एजुकेशन – ग्रेजुएशन
संपत्ति- 6.5 करोड़ रुपये+
आपराधिक रिकॉर्ड- शून्य (0)

राजगढ़ सीट से दो बार के सांसद रोडमल नागर पर बीजेपी ने भरोसा जताते हुए फिर से टिकट दिया है. नागर लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) से जुड़े रहे हैं. बीजेपी के संगठन स्तर पर भी काम किया. आरएसएस के अलग-अलग पदों पर काम किया जिनमें विद्यार्थी विस्तारक, महानगर प्रचारक, जिला कार्यवाह जैसे पद शामिल हैं.

साल 2003 से 06 तक बीजेपी जिलाध्यक्ष के पद पर रहे. 2005 में जिला पंचायत का चुनाव लड़ा लेकिन तीसरे स्थान पर रहे. इसके बाद 2005 से 2014 तक कोई चुनाव नहीं लड़ा. इस दौरान नागर ने बीजेपी के संगठन को मजबूत करने के लिए काम किया. बीजेपी प्रदेश स्तर की कार्यसमिति के अध्यक्ष भी रहे.

साल 2014 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और 2.50 लाख से ज्यादा वोट से कांग्रेस के नारायण सिंह आमलाबे को हराकर संसद पहुंचे. इसके बाद 2019 के चुनाव में अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 4 लाख से ज्यादा वोट से कांग्रेस की मोना सुस्तानी को हराया था.

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रोडमल नागर बनाम दिग्विजय सिंह

रोडमल नागर और दिग्विजय सिंह दोनों ही राजगढ़ सीट से सांसद रह चुके हैं. जहां एक ओर रोडमल नागर आरएसएस के जुड़े रहे हैं और पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं. किरार समाज से आने वाले नागर ओबीसी वर्ग से हैं.

दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश से राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं. सवर्ण वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले सिंह ने विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा से लेकर संगठन स्तर तक का काम किया है. राजगढ़ सीट पर अपना प्रभाव रखते हैं क्योंकि इस सीट से दिग्विजय सिंह सांसद रह चुके हैं.

आम चुनाव 2019 : रोडमल नागर सांसद बने

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के रोडमल नागर को 8 लाख, 23 हजार, 824 वोट मिले थे. कांग्रेस प्रत्याशी मोना सुस्तानी को 3 लाख 92 हजार 805 वोट मिले थे. दोनों के बीच जीत का अंतर 4 लाख 31 हजार 19 रहा. इस तरह रोडमल नागर ने कांग्रेस की मोना सुस्तानी को बहुत बड़े अंतर से हरा दिया.

राजगढ़ सीट का राजनीतिक इतिहास: लक्ष्मण सिंह 5 बार सांसद रहे

इस सीट से दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह 5 बार सांसद रहे. साल 1994, 1996, 1998, 1999 और 2004 में सांसद चुने गए. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में लक्ष्मण सिंह ने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा था. इस सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस से दो सांसद चुनकर आए. इनमें लीलाधर जोशी और भागु नंदू मालविया थे.

भानु प्रकाश सिंह पहले स्वतंत्र सांसद रहे जिन्होंने 1962 का चुनाव जीता था. पहले गैर-कांग्रेसी सांसद बाबूराव पटेल रहे. जिन्होंने साल 1967 का चुनाव भारतीय जनसंघ के टिकट से जीता था. साल 1989 में पहली बार बीजेपी के टिकट से प्यारेलाल खंडेलवाल ने चुनाव जीता.

4 ऐसे सांसद रहे जिन्होंने दो बार राजगढ़ सीट से चुनाव जीता. इन सांसदों में लीलाधर जोशी, वसंत कुमार पंडित, दिग्विजय सिंह और रोडमल नागर हैं.

राजगढ़ सीट पर जातिगत समीकरण

इस सीट पर 18 लाख से ज्यादा वोटर्स उम्मीदवारों का भाग्य निर्धारित करते हैं. इस सीट पर अलग-अलग जाति और समुदाय की बात करें तो अनुसूचित जाति के 3 लाख से ज्यादा और अनुसूचित जनजाति के करीब 10 हजार लोग हैं. इस सीट पर ओबीसी वर्ग सबसे प्रभावशाली है जिनमें धाकड़, किरार, दांगी आते हैं जिनका यहां प्रभुत्व है. इसके अलावा सवर्ण वर्ग के ब्राह्मण और राजपूत का भी दबदबा रहा है.

अल्पसंख्यक मतदाता यहां करीब 6 फीसदी हैं. ऐसा माना जाता है कि 1.5 लाख मीणा और 1.25 लाख वोटर्स कांग्रेस को जिताने में मदद करते हैं. वहीं 2 लाख दांगी और एक लाख धाकड़ वोटर्स बीजेपी को वोट देते हैं.

(SOURCE: ECI, myneta.info, digital sansad)

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