MP में अभियोजन प्रक्रिया में बदलाव, लोकायुक्त और EOW जांच में गुमनाम शिकायत पर सुनवाई नहीं कर सकेंगे
MP News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में कर्मचारी-अधिकारी के खिलाफ चल रही लोकायुक्त, EOW पुलिस की जांच के दौरान उनके अभ्यावेदन पर पैरालल जांच या सुनवाई नहीं हो सकेगी. सामान्य प्रशासन विभाग ने विभागीय जांच और अभियोजन (मुकदमा) से संबंधित मामलों को लेकर नए निर्देश जारी किए हैं. इसमें कहा गया है कि अभ्यावेदन पर सुनवाई सिर्फ तभी हो सकेगी जब शिकायत निजी तौर पर हुई हो. सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश से जांच एजेंसी में चल रही जांच पर भी असर पड़ सकता है. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एजेंसियां कैसे एक्शन लेंगी, इस पर भी अब सवाल उठने लगे हैं.
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निर्देश में कहा है कि अभियोजन स्वीकृति के मामले में सक्षम अधिकारी अभियोजन स्वीकृति का स्पष्ट उल्लेख नस्ती में करेंगे. यह भी बताया जाएगा कि संबंधित के बयान, जब्ती मेमो सभी दस्तावेजों का अध्ययन कर लिया है. केस पहली नजर में अभियोजन योग्य होने से इसे मंजूरी दी गई है. अगर किसी निजी व्यक्ति या संस्था की शिकायत पर अभियोजन की स्थिति बनती है तो संबंधित कर्मचारी को सुने जाने का मौका दिया जाना जरूरी होगा. उसकी बात सुने बगैर अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी जा सकेगी. ऐसे मामले में तीन माह के भीतर निराकरण करना होगा. निजी शिकायत के मामले में यदि नियुक्ति कर्ता अधिकारी प्रकरण को अभियोजन स्वीकृति के लिए उचित नहीं पाता है तो वह अभियोजन स्वीकृति को नकार सकता है.इस तरह के मामले में विधि विभाग से सलाह जरूरी नहीं होगी.
आदेश की जरूरत क्यों पड़ी?
दरअसल शासन के संज्ञान में आया है कि अभियोजन स्वीकृति के जारी आदेशों में तकनीकी और लिपिकीय गलतियां होती हैं. इस कारण मुकदमा चलाने की स्वीकृति आदेश में जांच एजेंसियां संशोधन कराती है. जिससे केस कोर्ट में पेश करने में अनावश्यक देरी होती है. अब खास ध्यान रखना होगा कि अफसर के साइन, सील और हर स्थान पर अपराध क्रमांक और धारा का जिक्र हो. कभी-कभी रिश्वत की राशि, रिश्वत लेने की तारीख, प्रार्थी का नाम नहीं लिखा होता है. इसे भी अधिकारी ध्यान में रखेंगे. मुकदमा स्वीकृति आदेश के रूप में होना चाहिए.
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45 दिन के भीतर स्वीकृति देंगे अधिकारी
भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में कोर्ट में पेश किए जाने वाले चालान को लेकर हाल ही में जारी निर्देशों में कहा है कि इसके पहले जारी इससे संबंधित सभी निर्देश निरस्त किए जा रहे हैं. नए निर्देशों के अनुसार जांच एजेंसी के अभियोजन स्वीकृति के प्रकरण या आवेदन रिकॉर्ड समेत नियुक्ति करने वाले अधिकारी को भेजा जाएगा. नियुक्ति करने वाले अधिकारी प्रकरण के परीक्षण के दौरान अगर यह पाते हैं कि केस मंजूरी के लायक है तो केस की डायरी मिलने के बाद 45 दिन के भीतर अभियोजन की स्वीकृति जारी कर उसे जांच एजेंसी को भेजेंगे.
भंग हो सकती है जांच की गोपनीयता
कानून मामलों की जानकारी का कहना है कि सामान्य प्रशासन विभाग के नए आदेश से जांच की गोपनीयता भंग हो सकती है. उसके पीछे की वजह है कि अगर सभी जानकारी विभाग या फिर कर्मचारियों के सामने ही जांच के तथ्य सामने आएंगे तो इससे आरोपी गवाह को कोर्ट में बदलने के लिए बना सकता है. जांच भी प्रभावित कर सकता है. हालांकि जांच एजेंसी के सामने चुनौती है कि अगर वह कोर्ट में तथ्य सही नहीं रख सके और गवाह भी नहीं तैयार कर पाए तो कोर्ट में केस खारिज भी अधिकांश मामलों में हो जाता है. नए आदेश के मुताबिक अगर जांच एजेंसियां सभी जानकारी पहले ही आरोपी पक्ष के सामने रख देती है तो फिर कैसे मजबूत नहीं होगा.