MP News: अशोकनगर में कलेक्ट्रेट भवन के पिलर में आईं दरारें, साढ़े 19 करोड़ की लागत से हुआ था निर्माण

कलेक्ट्रेट के पिलरों की दरारें उस लापरवाही की गवाही दे रही हैं, जो निर्माण से लेकर बाद की देख रेख तक हर जगह साफ महसूस होती है. कलेक्ट्रेट की यह हालत लोगों में हैरानी के साथ गुस्सा भी पैदा कर रही हैं.
Cracks appeared in the walls of the Collectorate in Ashoknagar.

अशोकनगर में कलेक्ट्रेट में दीवारों में दरारें आईं.

MP News: मध्य प्रदेश में अशोकनगर जिले की व्यवस्था को संभालने वाली सबसे अहम इमारत, कलेक्ट्रेट अब खुद ही मरम्मत की मांग करते हुए दिखाई दे रही है. 2016 में 19 करोड़ 43 लाख रुपये खर्च कर जिस आधुनिक बिल्डिंग को जिले की शान बताया गया था, वही इमारत महज नौ साल में ही अपनी हालत पर सवाल उठाने लगी है. भवन के आठ पिलरों में एक से डेढ़ इंच तक की गहरी दरारें साफ दिखाई दे रही हैं इन दरारों को देखकर किसी भी तकनीकी विशेषज्ञ को अंदाजा लग जाएगा कि यहां सिर्फ प्लास्टर नहीं टूटा है, बल्कि पूरी संरचना अपनी मजबूती खो रही है.

कलेक्ट्रेट की हालत देखकर जनता में गुस्सा

कलेक्ट्रेट के पिलरों की दरारें उस लापरवाही की गवाही दे रही हैं, जो निर्माण से लेकर बाद की देख रेख तक हर जगह साफ महसूस होती है. कलेक्ट्रेट की यह हालत लोगों में हैरानी के साथ गुस्सा भी पैदा कर रही है. जनता का तंज साफ है कि जिस इमारत से जिले के फैसले निकलते हैं, वहीं आज अपने अस्तित्व को लेकर फैसला मांग रही है. सवाल उठ रहे हैं कि करोड़ों की लागत से बनी सरकारी बिल्डिंग आखिर इतनी जल्दी क्यों जर्जर होने लगी है. क्या निर्माण के समय गुणवत्ता सिर्फ कागजों पर ही दर्ज थी या फिर निगरानी का काम भी फाइलों में ही पूरा कर लिया गया था. दरारें बढ़ती जा रही हैं और प्रशासन की चुप्पी उतनी ही गहरी होती जा रही है.

फायर सेफ्टी की व्यवस्था की भी अनदेखी

सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कलेक्ट्रेट में लगा फायर सेफ्टी की व्यवस्था भी अनदेखी का शिकार है. जिन उपकरणों को आग लगने पर लोगों की सुरक्षा के लिए लगाया गया था, वे खुद ही जंग खाकर गिरने की हालत में हैं. हाइड्रेंट बॉक्स पर मोटी परत में जंग जम चुकी है और कई हाइड्रेंट बॉक्स से पाइप गायब हैं. यानी इमारत में आग जैसी आपदा की स्थिति में मौजूद सिस्टम सिर्फ नाम का रहेगा, काम का नहीं. फाइलों में सुरक्षा पूरी है, जमीन पर सिर्फ खोखलापन बचा है. कलेक्ट्रेट भवन की हालत सिर्फ एक इमारत का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की लापरवाही का आईना है.

9 साल भी नहीं चल पाई करोड़ों की लागत से बनी इमारत

करोड़ों खर्च कर बनाई गई बिल्डिंग नौ साल भी नहीं झेल पाई, तो साफ है कि या तो निर्माण में गड़बड़ थी या फिर बाद की देखरेख में घोर उपेक्षा थी. अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इन दरारों को गंभीरता से लेगा या फिर हमेशा की तरह इस पर भी धूल चढ़ने दी जाएगी. लोगों का कहना है कि सरकार नई योजनाओं और नए भवनों के उद्घाटन में तो तेज है, लेकिन पुराने भवनों की सुरक्षा और रखरखाव पर कोई ध्यान नहीं देता. अब समय आ गया है कि कलेक्ट्रेट भवन की संरचनात्मक जांच कराई जाए, फायर सेफ्टी सिस्टम को पूरी तरह बदला जाए और उन जिम्मेदारों पर कार्रवाई हो जिनकी वजह से यह स्थिति बनी है. लेकिन बड़ा सवाल अब भी यथावत है कि क्या विभाग आज जागेगा, या फिर किसी बड़ी अनहोनी का इंतजार करेगा?

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