‘मध्य प्रदेश को एमपी ना कहा जाए’, हाई कोर्ट में अनोखी मांग वाली याचिका लेकर पहुंचा शख्स, जानिए HC ने क्या कहा
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
MP High Court: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अनोखी मांग वाली याचिका दायर की गई. रविवार यानी 27 जुलाई को उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने कोर्ट में ‘मप्र’ और ‘एमपी’ बोलने या लिखने पर लगाए गए याचिका को खारिज कर दिया. दरअसल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के निवासी वीके नस्वा ने जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने एमपी या मप्र प्रयोग किए जाने पर आपत्ति जताई.
याचिकाकर्ता का कहना था कि संविधान में प्रदेश का नाम स्पष्ट रूप से मध्य प्रदेश है, इसके बावजूद अधिकांश लोग दैनिक जीवन में इसे मप्र या एमपी के रूप में प्रयोग करते हैं. उन्होंने अदालत से अपील की कि राज्य और केंद्र सरकार को निर्देशित किया जाए कि इस तरह के नामों का प्रयोग न हो.
मप्र या एमपी संवैधानिक और सामान्य प्रचलन है
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से नकारते हुए कहा कि नाम का संक्षिप्तीकरण करना कोई असंवैधानिक या अवैध कार्य नहीं है. अदालत ने कहा कि दुनियाभर में नामों को संक्षेप में लिखना एक सामान्य प्रचलन है. उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा कि यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका को यूएसए और यूनाइटेड किंगडम को यूके लिखा और बोला जाता है.
समय बचत के लिए है जरूरी
वहीं कोर्ट ने दूसरे शब्दों मे कहा कि मध्य प्रदेश को एमपी या मप्र कहना राज्य की पहचान को सरल बनाता है न कि उसका नाम बदलता है. इसके साथ ही कोर्ट ने आगे कहा कि आज के इस आधुनिक लेखन और संचार व्यवस्था में जगह और समय बचाने के लिए ऐसे संक्षिप्त शब्दों का प्रयोग जरूरी हो गया है. सरकारी कामकाज से लेकर वाहन रजिस्ट्रेशन और टैक्स सिस्टम तक, राज्यों के कोड और शॉर्ट फॉर्म का उपयोग अब एक मानक प्रक्रिया बन चुकी है.
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‘संक्षिप्त नाम से समय की बचत’
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता यह स्पष्ट नहीं कर सके कि इस याचिका में जनहित क्या है. केवल इस आधार पर कि लोग ‘एमपी’ कहते हैं, इसे संवैधानिक उल्लंघन नहीं कहा जा सकता. हाई कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि किसी राज्य के लिए प्रचलित संक्षिप्त नाम का प्रयोग प्रतिबंधित करना न तो व्यवहारिक है और न ही कानूनी रूप से आवश्यक. साथ ही हाईकोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि एमपी या मप्र कहना कोई गलत बात नहीं, बल्कि समय के साथ विकसित हुई एक सहज भाषा शैली का हिस्सा है.