MP News: 1,660 करोड़ रुपये की परियोजना में करप्शन का मामला, 4 अधिकारियों पर आरोप तय, ई-टेंडरिंग घोटाले की भी जांच हो सकती है
MP News: जल संसाधन विभाग (Water Resources Department) की 1,660 करोड़ रुपये की परियोजना (Project) में भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले में चार अधिकारियों पर आरोप पहली जांच में सही पाए गए हैं. चारों अधिकारियों के खिलाफ जांच रिपोर्ट, जांच अधिकारी ने दे दी है. अब अधिकारियों के खिलाफ क्या एक्शन लेना है, इस पर जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव फैसला करेंगे. 6 जनवरी 2025 को सभी अधिकारियों को मंत्रालय में पेश होने के लिए निर्देश दिए गए हैं.
रैतम बैराज बनाने में गड़बड़ी का मामला
जांचकर्ता ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संबंधित दस्तावेज के आधार पर अधिकारियों पर दोष सिद्ध हुआ है. तत्कालीन कार्यपालन यंत्री अरविंद कुमार खरे, एसएस गहरवार, प्रभारी कार्यपालन यंत्री आर के सांकला और जेसी कुमावत पर लगे आरोप जांच में सही पाए गए हैं. दरअसल अधिकारियों के खिलाफ मंदसौर में रैतम बैराज परियोजना में गड़बड़ी के मामले में कार्रवाई चल रही है.
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उम्र बताई 100 साल, 7 साल में ही ढह गया
साल 2010 में बने बांध की उम्र 100 साल बताई गई थी. लेकिन 7 साल में ही बांध टूट गया था. जिसकी वजह से मंदसौर-नीमच के 24 से अधिक गांव में जल भराव की स्थिति बन गई थी. अधिकारियों ने कंस्ट्रक्शन करने वाले गुजरात के कारोबारी और कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक के खिलाफ भी एक्शन नहीं लिया. इसके बाद मामले को दबाने के लिए चार करोड़ रुपये मरम्मत के लिए जारी कर दिया.
निर्माणकार्य में खामी पाई गई और फिर से बारिश में बांध में दरार आ गई थी. ऐसे ही मंदसौर और नीमच जिले में कई परियोजनाओं में गड़बड़ी के मामले में अधिकारियों ने जांच रिपोर्ट में भी लापरवाही बरती थी. मामला उजागर होने के बाद तत्कालीन जल संसाधन मंत्री जयंत मलैया ने जांच के निर्देश दिए लेकिन कई सालों तक जांच रिपोर्ट विभाग तक नहीं पहुंची. पिछले महीने ही अधिकारियों के खिलाफ जांच रिपोर्ट विभाग को मिली. जिसके बाद एक्शन लेने के लिए अधिकारियों को पेश होने के लिए कहा गया है.
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‘अधिकारियों को सस्पेंड किया जा सकता है’
पूर्व अधिकारियों का कहना है कि अगर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है तो उन्हें सस्पेंड किया जा सकता है. इसके अलावा जांच एजेंसी को भी मामला विभाग दे सकता है. आर्थिक अनियमितता विभागीय कामकाज में लापरवाही के आरोप तय होंगे. अधिकारियों की लापरवाही और निगरानी सही तरीके से न रखने की वजह से सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ और सबसे ज्यादा जनता को नुकसान हुआ.
3000 करोड़ रुपये की ई-टेंडरिंग पर हो सकती है जांच
ई-टेंडरिंग घोटाले के मामले में एक बार फिर से जांच शुरू हो सकती है. हालांकि कोर्ट ने आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया था. लेकिन कुछ साक्ष्य के आधार पर कोर्ट ने फिर से जांच करने के लिए निर्देश दिए हैं. 3000 करोड़ के ई टेडरिंग घोटाले में कई अधिकारी और मंत्रियों से जुड़े हुए करीबियों का नाम भी उजागर हुआ था. सबसे ज्यादा जल संसाधन विभाग के ही प्रोजेक्ट में गड़बड़ी पाई गई थी.
टेंडर खुलने से पहले ही कई कंपनियों को रेट पहले से ही पता चल गए थे. इसके बाद मध्य प्रदेश में जमकर सियासत भी हुई. कुछ अधिकारियों से पूछताछ भी हुई, कई को जेल भेजा गया लेकिन सजा नहीं हुई.