MP में सरकारी सिस्टम में आरक्षण के हाल, पदोन्नति पर रोक का सरकारी आदेश नहीं, फिर साल में बिना प्रमोशन रिटायर्ड हुए सवा लाख कर्मचारी

MP News: मध्य प्रदेश के लगभग सात लाख कर्मचारियों को आठ साल से पदोन्नति का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है. वैसे इसे लेकर सरकार भी गंभीर नहीं है और दो साल में दो समितियां भी बना चुकी है, पर समितियों की अनुशंसा का लाभ सिर्फ कार्यवाहक पदोन्नति में सिमट गया है.
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प्रतीकात्मक चित्र

MP News: मध्यप्रदेश में पदोन्नति पर रोक का कोई भी सरकारी आदेश जारी नहीं हुआ हैं. बावजूद इसके आठ साल से बिना प्रमोशन के सवा लाख से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. यह खुलासा शासन में लगाए गए एक सूचना के अधिकार से हुआ है. वहीं, पदोन्नति का मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के बाद भी मप्र हाईकोर्ट कई प्रकरणों में कह चुका है कि पदोन्नति पर कोई रोक नहीं है.

हाईकोर्ट में अलग-अलग बेंचों में लगे कुछ प्रकरणों में कर्मचारियों को पदोन्नति भी मिल गई है. मध्य प्रदेश में पिछले आठ वर्ष से सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नतियां नहीं हुई हैं. वर्ष 2016 में हाईकोर्ट जबलपुर ने पदोन्नति नियम 2002 को निरस्त कर दिया था. तब से अब तक तीन सरकार बदल चुकी हैं, लेकिन कोई भी सरकार पदोन्नति का रास्ता नहीं निकाल पाई हैं. मामला पदोन्नति में आरक्षण को लेकर फंसा हुआ है. इसको लेकर शिवराज सरकार ने समिति भी बनाई और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से नियम भी बनवाए पर अभी तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया. इस बीच हजारों अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नत हुए ही सेवानिवृत्त हो गए. शिवराज सरकार के बाद कमलनाथ सरकार भी 15 माह के लिए आई पर उसने भी कुछ नहीं किया.

अब मोहन सरकार निकालेगी रास्ता

मार्च 2020 में फिर शिवराज सरकार बनी और उन्होंने पदोन्नति के विकल्प के रूप में उच्च पद का प्रभार देने का निर्णय लेकर कर्मचारियों को साधने का प्रयास किया. प्रकरण अब भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. अब 2016 के बाद से यह चौथी सरकार है और कर्मचारियों को उम्मीद है कि मोहन सरकार पदोन्नति में आरक्षण को लेकर कोई ठोस प्रयास कर इसका रास्ता निकालेगी. इसी बीच पशुपालन विभाग, नगर निगम, स्कूल शिक्षा समेत कुछ विभागों के कर्मचारी पदोन्नति को लेकर सिंगल-सिंगल याचिकाएं लगाई, जिसमें उन्हें पदोन्नति का लाभ भी मिल गया है. हाईकोर्ट ने कई प्रकरणों में कहा है कि पदोन्नति में कोई रोक नहीं है.

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सात लाख कर्मचारियों को इंतजार

मध्य प्रदेश के लगभग सात लाख कर्मचारियों को आठ साल से पदोन्नति का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है. वैसे इसे लेकर सरकार भी गंभीर नहीं है और दो साल में दो समितियां भी बना चुकी है, पर समितियों की अनुशंसा का लाभ सिर्फ कार्यवाहक पदोन्नति में सिमट गया है. वरिष्ठ पद का प्रभार देने की इस वैकल्पिक व्यवस्था में कर्मचारियों को आर्थिक लाभ से वंचित होना पड़ रहा है. प्रदेश में हर माह औसतन डेढ़ हजार कर्मचारी सेवानिवृत हो रहे हैं. उल्लेखनीय है कि पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इसलिए अप्रैल 2016 से पदोन्नति पर रोक लगी है. इस बीच 1 लाख 25 हजार से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत हो चुके हैं. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को ‘मध्य प्रदेश लोक सेवा ( पदोन्नति ) नियम 2002 खारिज किया था.

कर्मचारी हित में नहीं कार्यवाहक पदोन्नति

राज्य सरकार ने नौ दिसंबर 2020 को प्रशासन अकादमी के महानिदेशक की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी. समिति से 15 जनवरी 2021 तक अनुशंसा मांगी थी. तय समय से कुछ दिन बाद समिति ने अपनी अनुशंसा दे दी. इसके बाद सरकार ने 13 सितंबर 2021 को तत्कालीन गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल उपसमिति गठित की. समिति ने अपनी अनुशंसा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दी. इसके बाद कुछ विभागों में कार्यवाहक पदोन्नति का रास्ता निकाला गया, लेकिन यह भी कर्मचारी हित में नहीं है.

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