MP में हारे बूथों पर जातीय समीकरण साधने की BJP की रणनीति, विधानसभा चुनाव में 20 फीसदी बूथों पर पार्टी को मिले थे कम वोट

MP News: प्रदेश के ग्वालियर-चंबल अंचल में सबसे अधिक बूथ थे जिनमें पार्टी को जातीय समीकरण के कारण पराजय का सामना करना पड़ा था.
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बीजेपी (फोटो- सोशल मीडिया)

MP News: मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी अब जातीय समीकरण को साधने के लिए रणनीति तैयार करेगी. इसके लिए पार्टी ने ऐसे सभी बूथ जिन पर विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा या फिर वोट का अंतर कम हुआ है, वहां काम करने के निर्देश प्रदेश नेतृत्व को दिए हैं.

पिछले दिनों दिल्ली में भाजपा की बैठक में मध्यप्रदेश के विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान जिन बूथों पर पराजय का सामना करना पड़ा. उनको लेकर मंथन किया गया. बैठक में ऐसे सभी बूथों की जानकारी दी गई जहां भाजपा को या तो वोट नहीं की थी. वहीं लोकसभा चुनाव में वह पांच सीट पर आगे रही. इसी तरह भिंड लोकसभा के अन्तर्गत आने वाली विधानसभा सीट पर विधानसभा सबसे अधिक ग्वालियर-चंबल अंचल के बूथों पर मिली हार मिले या फिर उम्मीद से कम मिले.

प्रदेश के 64523 बूथों में से करीब 20 फीसदी बूथ ऐसे रहें जहां भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा. हालांकि इसके बाद पार्टी ने लोकसभा चुनाव में काफी मेहनत की तो ऐसे बूथों की संख्या में कमी आई और करीब 12 सौ बूथ पर पार्टी ने पिछले रिकार्ड को तोड़ा.

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चंबल अंचल में सबसे ज्यादा पार्टी को मिला कम जन समर्थन

इनमें से प्रदेश के ग्वालियर-चंबल अंचल में सबसे अधिक बूथ थे जिनमें पार्टी को जातीय समीकरण के कारण पराजय का सामना करना पड़ा था. पार्टी आलाकमान ने प्रदेश के इस अंचल में जातीय समीकरण साधने के लिए प्रदेश नेतृत्व को काम करने के निर्देश दिए हैं. भाजपा ने जहां विधानसभा चुनाव में मुरैना लोकसभा की महज तीन सीट पर विजय प्राप्त की है.

अब नेताओं की होगी स्थानीय स्तर पर जिम्मेदारी तय

लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से 6 विधानसभा सीट पर बढ़त प्राप्त की. ग्वालियर लोकसभा में आने वाली विधानसभा सीटों में से भाजपा और कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला रहा, लेकिन लोकसभा चुनाव में यहां भी भाजपा ने विधानसभा चुनाव की अपेक्षा बढ़त बनाई. दिल्ली की बैठक में इसी बात को लेकर मंथन किया गया कि किस विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण के कारण पार्टी को नुकसान उठाना पड़ता है, उसको साधने का प्रयास किया जाना चाहिए और क्षेत्र में ऐसे नेताओं को आगे करना चाहिए जो उस क्षेत्र में जातीय समीकरण के प्रभाव को कम कर सके. अब पार्टी ऐसे नेताओं को आगे करने में लगी है जिनको सभी जातियों के लोगों का समर्थन मिलता रहा है.

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