Lok Sabha Election 2024: मध्य प्रदेश के वोटर्स की उंगली पर लगेगी तीन करोड़ रुपए की स्याही
BHOPAL: मतदान के बाद अपनी उंगली पर लगी स्याही के साथ फोटो तो आपने भी ली होगी. खासकर के युवाओं में इसे लेकर काफी उत्सुकता देखने को मिलती है. लेकिन कभी आपने ये सोचा है की ये न मिटने वाली स्याही बनती कैसे है? क्या है इसका इतिहास और क्या इसे हर कोई बना सकता है?
19 अप्रैल से लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में मतदान होने है. प्रदेश की 29 सीटों पर चार चरणों में कुल 5 करोड़ 63 लाख मतदाता, मतदान करेंगे. मतदान के बाद लोगों की उंगलियों पर एक प्रकार की अमिट स्याही लगाई जाती है ताकि कोई भी मतदाता अपने मत का दो बार इस्तेमाल न करे. साथ ही किसी प्रकार के फर्जी मतदान को रोकने के लिए इस स्याही को पहचान के रूप में प्रयोग किया जाता है.
इस बार के मतदान से पहले इस स्याही का स्टॉक भोपाल पहुंच गया है. मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी ही इस स्याही को बना सकती है. इस स्याही को फिर हर राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय के बताने अनुसार सामग्री केंद्र को भेजी जाती है. इस बार चुनाव के लिए कंपनी ने 1 लाख 52 हजार शीशियों का स्टॉक भेजा है जिसकी कुल कीमत लगभग 3.14 करोड़ से ज्यादा की बताई जा रही है.
चुनाव कराने के लिए जैसे जैसे मतदान दल पोलिंग बूथ के लिए रवाना होंगे उनके साथ सेंटर से सामग्री और अमिट स्याही की शीशियां दी जाती है.
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भारत में पहली बार 1951 52 में चुनाव हुए थे. उस चुनाव में कई लोगों ने किसी अन्य व्यक्ति के स्थान पर मतदान किया था तो कइयों ने एक से अधिक बार अपने मत का प्रयोग किया था. शिकायत मिलने पर, चुनाव आयोग के सामने ये बात एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में आ खड़ी हुई. बतौर समाधान, चुनाव आयोग ने मतदाता की उंगली पर किसी प्रकार के निशान बनाने बनाने का सोचा जिससे ये पता लग सके की किसने अपने मत का प्रयोग कर लिया है यानी की मतदान कर लिया है. इस समाधान पर चुनौती थी की ये निशान अमिट होना चाहिए.
चुनाव आयोग ने ऐसी अमिट स्याही तैयार करने की जिम्मेदारी नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) को सौंपी. एनपीएल ने ऐसी अमिट स्याही तैयार की जिसे न तो पानी और ना ही किसी केमिकल से हटाया जा सकता है. साथ ही एनपीएल ने इस स्याही को बनाने का ऑर्डर मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड को दिया.
एमपीवीएल का इतिहास
एमपीवीएल का इतिहास वाडियार राजवंश से जुड़ा है. कर्नाटक के मैसूर में वाडियार राजवंश का राज हुआ करता था. दुनिया के सबसे अमीर राजघरानों में गिने जाने वाला महाराजा कृष्ण राज वाडियार आजादी के पहले यहां के शासक थे. वाडियार ने 1937 में पेंट और वार्निश फैक्ट्री खोली जिसका नाम मैसूर लैक एंड पेंट्स रखा. आजादी के बाद यह फैक्ट्री कर्नाटक सरकार के पास चली गई. 1989 में इस फैक्ट्री का नाम बदलकर मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (Mysore Paints And Varnish) कर दिया गया.
1951-52 में पहले चुनाव के बाद 1962 में पहली बार अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया था और आज तक किया जा रहा है. इस स्याही का निशान लगभग 15 -20 दिनों तक रहता है. इस स्याही को बनाने का फॉर्मूला अब तक गुप्त है लेकिन कुछ जानकारों के अनुसार इस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट का प्रयोग किया जाता है जिस वजह से यह स्याही फोटोसेंसिटिव प्रकृति की हो जाती है . साथ ही इस स्याही पर धूप पड़ने से ये बैगनी से काले रंग की हो जाती है.
दूसरे देशों में होता निर्यात
दुनियाभर के कई सारे देश एमपीवीएल की बनी अमिट स्याही का प्रयोग करते है. रिपोर्ट के अनुसार 28 देश एमपीवीएल से यह स्याही खरीदते है. इन देशों में अफगानिस्तान, तुर्की,नाइजीरिया, कंबोडिया, नेपाल ,मालदीव, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा शामिल है.