MP News: रायसेन की सोम डिस्लेरी में कैसे नाबालिग बच्चों से कराया जाता था काम, जानिए A टू Z पूरी कहानी

MP News: बेधड़क बच्चों से काम कराने का सिलसिला एक ही कई महीनों से चल रहा था.
Minor children were made to work in Som Disley of Raisen.

रायसेन की सोम डिस्लेरी में नाबालिग बच्चों से काम कराया जाता था.

MP News: काम ज्यादा और मजदूरी कम… इसीलिए सोम डिस्लेरी में नाबालिग बच्चों से काम कराया जाता है. आखिर बच्चे कैसे फैक्ट्री में काम करते हैं… पढ़िए… 12 से लेकर 15 साल के बच्चों से बाल मजदूरी कराने वाली कंपनी में आखिर क्या-क्या होता है.. पूरी कहानी खुद बयां करने वाले बाल श्रमिक..

सोम डिस्टलरी में काम करने वाले बच्चों ने बताया कि वो खुद फैक्ट्री में काम करने के लिए जाते थे लेकिन कंपनी को भी श्रम कानूनों के तहत काम कराया जाना था. बेधड़क बच्चों से काम कराने का सिलसिला एक ही कई महीनों से चल रहा था. जहां गौर करने वाली बात है कि फैक्ट्री के भीतर आबकारी विभाग का दफ्त है. फिर भी बिना किसी डर बच्चों से काम करने वाली कंपनी चल रही थी.. विस्तार न्यूज से बातचीत में बच्चों ने बताया कि वो पढ़ाई नहीं करते हैं. काम और कुछ पैसों के लिए शराब की फैक्ट्री में जाते थे. उन्हें बाकी मजदूरों की तुलना में कम पैसा दिया जाता था. यही वजह होगी कि कम पैसे में ज्यादा मजदूरी और मुनाफा भी ज्यादा… करोड़ों रुपए का व्यापार करने वाली सोम डिस्लेरी बच्चों के बचपन से भी खिलवाड़ करने से पीछे नहीं हटी. बच्चों ने बताया कि फैक्ट्री के भीतर पैकजिंग और बोतलों को भरने का काम करते थे.

बच्चों से बातचीत करने पर हुए कई खुलासे

बच्चों ने फैक्ट्री के भीतर काम करने का तरीका….पेटी भरने का काम… बोतल भरने का काम… होलोग्राम लगाने का काम के बारे में बताया, लड़के शराब भरने का काम करने से काम करते है… फैक्ट्री के भीतर गर्म शराब को हाथ लगाने से खराब हो जाते हैं… वाशिंग का काम करने में 300 रुपए मिलते हैं… मतलब सब के काम का अलग-अलग रेट होता था.

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काम करने से गल जाते थे हाथ

बच्चों ने बताया कि वहां काम करने से हाथ भी गल जाते थे. हालांकि कुछ समय के बाद जरूर ठीक हो जाते थे. लेकिन सवाल है कि बच्चों से आखिर मजदूरी हीं क्यों. जिन्हें स्कूलों में पढ़ना था वो फैक्ट्री के भीतर काम करते थे. उन्होंने बताया कि परिवार को चलाने की मजबूरी भी थी.

नाबालिग बच्चियां फैक्ट्री के भीतर काम करती थी.

अब सवाल है कि बाल आयोग के बाद बच्चों के सेहत को लेकर मानवाधिकार ने आखिर संज्ञान क्यों नहीं लिया. जबकि बच्चों के अधिकारों के हनन के मामले में मानवाधिकार आयोग को संज्ञान लेने की जरूरत है… क्योंकि यह बाल मजदूरी श्रम विभाग की जिम्मेदारी है… यह किसी भी फैक्ट्री या फिर संस्था में काम न करें… हालांकि मोहन सरकार ने एक्शन लेते हुए कंपनी को सील करने के लिए आदेश जरूर दिए है…

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