Sagar Rape Case: दबंगों के खिलाफ रेप के आरोप ने एक लड़की,उसके भाई और चाचा की ले ली जान!
Sagar Murder Case: “दबंगों ने मेरे भाई, मेरे चाचा और मेरी उस बहन को मार डाला जो इनके अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठा रही थी. मेरी बहन ने 2019 में इन लोगों के खिलाफ यौन शौषण का केस दर्ज कराया था उसी केस में राजीनामा का दबाव बनाया जा रहा था और अंततः बहन, भईया और चाचा तीनों को मार डाला गया” आकाश (परिवर्तित नाम) जो कि पीड़ित लड़की का भाई है उसने ये बात विस्तार न्यूज से 28 मई की रात में कही.
जब आप इलाके के रसूखदार, सत्ता के करीबी लोगों के खिलाफ आवाज उठाते हैं या उनके किए गलत पर उंगली रखते हैं या कोई आरोप लगाते हैं तो अक्सर वही होता है जो मध्यप्रदेश के सागर जिले में बीते एक हफ्ते में हुआ. दरअसल सागर जिले में एक दलित महिला अंकिता द्वारा 2019 में चार प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत वापस न लेने के कारण उसका और उसके परिवार का जीवन बर्बाद हो गया है.
इतना ही नहीं बीते पांच वर्षों में दलित परिवार ने न सिर्फ राजीनामा के लिए बनाया जा रहा दबाव सहा बल्कि इंसाफ की राह ताकते हुए परिवार के तीन सदस्यों की मौत होते हुए देखी जिसमे एक वो महिला है जिसने सबसे पहले यौन शौषण का आरोप लगाया था. अंकिता के 50 वर्षीय पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं, जबकि उनकी मां घर का काम करती हैं.
परत दर परत पढ़िए आखिर इस पूरे मामले में क्या-क्या हुआ ?
वर्ष 2019 में उस वक्त नाबालिग रही एक दलित लड़की अंकिता (परिवर्तित नाम) ने गांव के ही कुछ प्रभावशाली लोगों के खिलाफ शोषण का आरोप लगाया. आरोप लगा एफआईआर हुई और फिर शुरू हुआ वर्चस्व और हक का टकराव.
एक तरफ जहां पावरफुल लोग अंकिता और उसके परिवार पर राजीनामा का दबाव बनाने लगे वहीं दूसरी ओर अंकिता के परिवार ने अपने कथन से न हटने का प्रण ले लिया था. खैर लगभग 4 वर्ष तक इसी रस्साकशी में अंकिता और उसका परिवार किसी तरह से तमाम दबावों और धमकियों के बीच समय काटता रहा. लेकिन चार साल बाद अंकिता के 18 वर्षीय भाई, शिवम (परिवर्तित नाम), की दिनदहाड़े पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. दरअसल आरोपियों द्वारा राजीनामा करने को लेकर नए तरह से दबाव बनाने की कोशिश करने लगे जिसके जवाब में शिवम ने अपना पक्ष मजबूती से रखा और यही कारण है कि उसे दिन दहाड़े बीच बाजार सबके सामने पीट पीट कर मार डाला गया.
इसी लड़ाई में अंकिता और शिवम की माँ को कथित रूप से उन लोगों द्वारा नग्न कर पीटा गया था जो उससे शिकायत वापस लेने की धमकी दे रहे थे. जब ये घटना सामने आई तो पूरा प्रदेश हिल गया. सियासी गलियारों में इस मुद्दे ने जातिवाद और दबंगई के खिलाफ एक बार फिर से चर्चा आम कर दी. तमाम मीडिया कवरेज ने ज़ोर पकड़ी और आरोपियों के तार राजनेताओं से को जुड़े थे वो सतह से बाहर झांकने लगे. हालांकि चीजों को आकार जाने में समय नहीं लगता है और ये घटना भी धीरे धीरे नेपथ्य में जाने लगी. प्रदेश में विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनावों की तैयारी के बीच एक बार फिर लगभग नौ महीने बाद, शनिवार 25 मई को अंकिता के चाचा, सुरेंद्र अहिरवार (परिवर्तित नाम) की हत्या कर दी गई.
अंकिता के परिवार वालों का कहना है कि शिवम की मौत के बाद सुरेंद्र ने इस लड़ाई का साझा जिम्मा संभाला था और इसलिए बातचीत करने के बहाने सुरेंद्र को बुलाया गया. सुरेंद्र जो शिवम की हत्या के मामले में गवाह थे, उनको 25 मई की रात 8:45 बजे कथित तौर पर पप्पू रजक के घर पर पांच व्यक्तियों ने लाठियों और कुल्हाड़ियों से हमला कर घायल कर दिया. उन्हें खुरई के एक स्थानीय अस्पताल ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई थी. चाचा की मृत्यु की खबर सुनकर अंकिता अस्पताल पहुंची और 26 मई को जब वो उस शव वाहन में बैठकर गांव लौट रही थी जिसमे उसके चाचा का शव था तब वो कथित तौर पर उस वाहन से गिर गई. हालांकि परिवार के लोगों ने अंकिता की मृत्यु को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने का आरोप लगाया है. राज्य पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि आखिर अंकिता की मौत क्या वाकई में एक दुर्घटना थी या फिर ये हत्या या आत्महत्या थी.
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अंकिता बार-बार जान से मारे जाने का शक कर रही थी
एक यौन उत्पीड़न के खिलाफ खड़ी हुई अंकिता को 2019 से ही कथित तौर पर धमकियां मिल रहीं थी लेकिन उसके भाई शिवम की 2023 में हत्या के बाद अंकिता ने कई समाचार संस्थानों से बातचीत के दौरान आरोपियों द्वारा जान का खतरा होने की बात की गई थी. इसी पत्रकार से बात करते हुए अंकिता ने वर्ष 2023 में कहा था कि “हमलावर संपन्न और प्रभावशाली परिवारों से हैं. वे ठाकुर हैं, और सरपंच के रिश्तेदार हैं. वे कई राजनेताओं से जुड़े हुए हैं, और इसलिए उन्हें बचाया जा रहा था.”
पुलिस ने खुरई ग्रामीण पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी में हत्या, दंगा और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत पांच व्यक्तियों को नामजद किया है: आशिक कुरैशी, बबलू बेना, इसराइल बेना, फहीम खान और तंतु कुरैशी. एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन पुलिस ने अभी तक विस्तृत बयान नहीं जारी किया है.
अंकिता के परिवार ने पहले भी आरोप लगाते हुए कहा था कि आरोपियों के संबंध सत्ताधारी पार्टी से हैं और इसीलिए उन्हें बचाया जा रहा है, अब किसका संबंध किस से है और कौन किसे बचा रहा है ये तो अदालत को तय करना है लेकिन इस पर सोचने की जरूरत है कि आखिर एक लड़की जो यौन शौषण का आरोप लगाती है, एक परिवार जो इसकी लड़ाई लड़ता है वो क्यों और कैसे अपने ही बीच के तीन लोगों को खो देता है। आखिर चस्मदीदों की हत्या क्यों हो जाती है और इसका जवाबदेह कौन होगा ?
इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नए मुख्यमंत्री मोहन यादव तक सभी ने पीड़ित परिवार से मुलाकात की है और साथ खड़े रहने का वादा किया है, हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है लेकिन इंसाफ की राह ताकती और अपने ऊपर हो रहे कथित अत्याचारों और दबाव के ऊपर ध्यान खींचने की कोशिश करती अंकिता के लड़ाई यहां समाप्त हो गई.