“मन चंगा, तो कठौती में गंगा…”, क्यों लिखी गई थी ये कहावत? संत रविदास की चमत्कारी कहानी

राजा ने ब्राह्मण को बुलाया और कहा, "अगर तुम दूसरा कंगन नहीं लाए, तो तुम्हें दंड मिलेगा." ब्राह्मण अब संकट में था. वह घबराया हुआ, सोचने लगा, "अब दूसरा कंगन कहां से लाऊं?" डरते हुए, वह संत रविदास के पास पहुंचा और सारी बात बताई.
Ravidas Jyanati 2025

संत रविदास

Ravidas Jyanati 2025: एक पुरानी कहावत है, “मन चंगा, तो कठौती में गंगा”, जो आज भी लोगों के दिलों में गूंजती है. इस कहावत का मतलब है कि यदि आपका मन शुद्ध और आपके इरादे अच्छे हैं, तो आपकी हर क्रिया पवित्र होती है, जैसे गंगा नदी में आप स्नान करने से पवित्र हो जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कहावत के पीछे एक दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी छिपी हुई है? आइए जानते हैं संत रविदास जी की यह अद्भुत और प्रेरक कहानी.

कहानी की शुरुआत

यह कहानी तब की है जब संत रविदास जी साधना में लीन थे. एक दिन वे अपनी झोपड़ी में बैठे हुए प्रभु का ध्यान कर रहे थे, और उसी वक्त एक ब्राह्मण उनके पास आया. ब्राह्मण ने संत रविदास से अपना जूता ठीक करने के लिए कहा. संत रविदास ने ब्राह्मण से पूछा, “कहा जा रहे हो?” ह्मण ने उत्तर दिया, “मैं गंगा स्नान करने जा रहा हूं.”

रविदास जी ने जूता ठीक करने के बाद ब्राह्मण से मुद्रा ली, लेकिन फिर उसे स्वीकार करने से मना कर दिया. संत रविदास जी ने कहा, “यह मुद्रा मेरी तरफ से मां गंगा को चढ़ा देना.”

जब हुआ अद्भुत चमत्कार

ब्राह्मण गंगा पहुंचा और जैसे ही उसने गंगा से कहा, “हे गंगे, रविदास की मुद्रा स्वीकार करो”, एक अद्भुत घटना घटी. गंगा से एक हाथ निकला और उस मुद्रा को लेकर बदले में ब्राह्मण को सोने का कंगन दे दिया. यह घटना ब्राह्मण के लिए एक चमत्कार से कम नहीं थी. लेकिन ब्राह्मण का मन लालच से भर गया. उसने सोचा, “अगर मैं यह कंगन राजा को दे दूं, तो मुझे बदले में और उपहार मिलेंगे.” उसने कंगन राजा को भेंट दिया, और बदले में कई उपहार लेकर घर लौट आया.

राजा की इच्छा और ब्राह्मण की परेशानी

अब राजा ने वह कंगन अपनी रानी को दे दिया. रानी ने खुश होकर कहा, “मुझे ऐसा ही एक कंगन चाहिए, ताकि दोनों हाथों में कंगन पहन सकूं.” राजा ने ब्राह्मण को बुलाया और कहा, “अगर तुम दूसरा कंगन नहीं लाए, तो तुम्हें दंड मिलेगा.” ब्राह्मण अब संकट में था. वह घबराया हुआ, सोचने लगा, “अब दूसरा कंगन कहां से लाऊं?” डरते हुए, वह संत रविदास के पास पहुंचा और सारी बात बताई.

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संत रविदास जी का चमत्कारी समाधान

संत रविदास जी ने ब्राह्मण को शांत किया और कहा, “तुम चिंता मत करो, मैं गंगा से दूसरा कंगन प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करूंगा.” फिर संत रविदास जी ने अपनी कठौती उठाई. यह कठौती आमतौर पर चमड़ा गलाने के लिए उपयोग होती थी, लेकिन संत रविदास जी का विश्वास था कि इस कठौती में भी गंगा का आशीर्वाद समाहित हो सकता है.

उन्होंने कठौती में पानी भरा और गंगा जी का आह्वान करते हुए जल छिड़कना शुरू किया. जैसे ही उन्होंने जल छिड़का, कठौती में एक और कंगन प्रकट हो गया. यह दृश्य ब्राह्मण के लिए अविश्वसनीय था. संत रविदास ने वह कंगन ब्राह्मण को सौंप दिया और कहा, “यह कंगन राजा को दे दो.”

कहावत का जन्म

ब्राह्मण खुशी-खुशी कंगन लेकर राजा के पास गया और उसे भेंट कर दिया. राजा और रानी दोनों खुश हो गए, और यही घटना एक प्रसिद्ध कहावत की नींव बन गई – “मन चंगा, तो कठौती में गंगा”.

इस कहानी का एक गहरा संदेश है. अगर आपके मन में पवित्रता और अच्छे इरादे हैं, तो आपकी हर क्रिया गंगा के समान पवित्र हो जाती है. गंगा का आशीर्वाद और भगवान की कृपा आपके जीवन में सच्चे दिल से आती है.

इस कहावत का एक और अर्थ है – अगर आपकी नीयत साफ और आपके मन में सच्चाई है, तो ईश्वर भी आपकी मदद के लिए सामने आएंगे. वह कभी भी आपके अच्छे कार्यों को अधूरा नहीं छोड़ते.

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