कैसे 11 साल की उम्र में बन गए संन्यासी? जानें राधा रानी के परम भक्त वृंदावन वाले Premanand Maharaj की कहानी

उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे प्रेमानंद महाराज के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय था.
Premanand Maharaj

प्रेमानंद जी महाराज (फोटो- सोशल मीडिया)

Premanand Maharaj: आध्यात्मिकता और भक्ति के क्षेत्र में कई ऐसे महान संत हुए हैं, जिन्होंने अपना जीवन दिव्य प्रेम और भगवान के लिए समर्पित कर दिया है. ऐसे ही एक श्रद्धेय संत हैं प्रेमानंद महाराज. राधा रानी के भक्त प्रेमानंद महाराज का जीवन भक्ति के मार्ग पर चलने वाले अनगिनत साधकों के लिए प्रेरणा के रूप में काम करती हैं. कहा जाता है कि उनके संबंध सीधे परमात्मा से है.

यूपी के एक छोटे से गांव में जन्मे प्रेमानंद महाराज ने कम उम्र में ही भगवान की महिमा को पहचान लिया. किंवदंतियों के अनुसार, वह बचपन से ही कई घंटों तक ध्यान और प्रार्थना में डूबे रहते थे. उनके ईश्वर में अटूट विश्वास ने कई आध्यात्मिक गुरुओं का ध्यान आकर्षित किया. बाद में इन्हीं गुरुवों ने उनकी असाधारण भक्ति को पहचाना और उनकी आध्यात्मिक यात्रा में उनका मार्गदर्शन किया. प्रेमानंद महाराज का भगवान कृष्ण की शाश्वत पत्नी राधा जी के प्रति भक्ति भाव उनकी साधना का केंद्र बिंदु है. उनका दृढ़ विश्वास है कि राधा ही भक्ति के प्रतीक के रूप में इस संसार में हैं.

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बता दें कि प्रेमानंद महाराज ने खुद को राधा रानी की सेवा और दिव्य प्रेम संदेश जगभर में फैलाने के लिए समर्पित कर दिया है. वह बचपन से ही भगवत भजन में घंटों बिताते हैं. कहा जाता है कि वो राधा रानी की भक्ति में खुद को डुबोए रहते हैं. गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद उन्होंने भक्ति का रास्ता नहीं छोड़ा. आज वृंदावन में हजारों की संख्या में भक्त उनके दर्शन करने आते हैं.

कौन हैं प्रेमानंद महाराज?

उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे प्रेमानंद महाराज के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय था. घर के भक्तिमय माहौल का असर तो बच्चे पर पड़ता ही है. भक्ति का असर अनिरुद्ध कुमार पांडेय पर भी पड़ा और उन्होंने पांचवीं कक्षा से ही गीता का पाठ शुरू कर दिया. मगर तब तक उनके मन में वृंदावन जाने का ख्याल नहीं आया था. जब वो करीब 11 साल के हुए तो एक पंडित ने उन्हें वाराणसी जाने के लिए कहा. इसके बाद वो वाराणसी पहुंच गए. यहां महीनों-सालों तक भक्ति में लीन रहे. तभी किसी गुरु ने उन्हें राधा रानी के बारे में बताया. इसके बाद प्रेमानंद महाराज सीधे वृंदावन पहुंच गए. इस बीच पता चला कि किसी बीमारी की वजह से उनकी दोनों किडनी खराब हो गई हैं. हालांकि राधा रानी और भगवान कृष्ण की ऐसी महिमा है कि किडनी खराब होने के 20 साल बाद भी महाराज जीवित हैं और भक्तों को भक्ति का मार्ग दिखा रहे हैं.

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