क्या है भोजपुर के अधूरे शिव मंदिर का रहस्य? जो सदियों से आस्था और धर्म का बना हुआ है केंद्र

इतिहासकारों एवं पुरातत्विदों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम के आगमन के पहले हुआ था.
bhojpur ka mandir

भोजपुर का मंदिर

भोजपुर एक जाग्रित शिव धाम है जो मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 23 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित है. ये भव्य मंदिर इतिहास की कई कहानियों को संजोए हुए हैं. भोजपुर मंदिर में विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग मौजूद है, जिसकी भव्यता श्रद्धालुओं को लुभाती है. इसके पीछे कई कहानियां मौजूद हैं, जिन्हें जानकर आप भोजपुर घूमने के लिए तैयार हो जाएंगे. इसे उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाता है.

रायसेन जिले में स्थित है भोजपुर मंदिर

रायसेन जिले की गौहर गंज तहसील के ओबेदुल्ला विकास खंड में स्थित इस शिव मंदिर को 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज प्रथम ने बनवाया था. शिव के इस धाम को भोजपुर शिव मंदिर या फिर भोजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. कंक्रीट के जंगलों को पीछे छोड़ प्रकृति की हरी भरी गोद में बेतवा नदी के किनारे बना उच्च कोटि की वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ था. इतिहासकार कहते हैं कि भोजपुर तथा इस शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 ई – 1055 ई ) द्वारा किया गया था.  

भोजपुर में मौजूद है 21.5 फीट का शिवलिंग  

भोजेश्वर मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यहां का विशाल शिवलिंग है. इस शिवलिंग की लंबाई 21.5 फीट है. मान्यता तो ये भी है कि एक ही पत्थर को तराशकर विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग निर्मित किया गया. सम्पूर्ण शिवलिंग की लम्बाई 5.5 मीटर (18 फीट ), व्यास 2.3 मीटर (7.5 फीट ), और केवल शिवलिंग की लम्बाई 3.85 मीटर (12 फीट) है. यहां हर साल दुनियाभर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

मंदिर के 40 फीट ऊंचाई वाले 4 स्तंभ

भोजपुर का शिव मंदिर जितना विशाल है उसकी ही विशाल इसकी वास्तुकला भी है. इस मंदिर की विशेषता इसके 40 फीट ऊंचाई वाले इसके चार स्तम्भ भी हैं. गर्भगृह की अधूरी बनी छत इन्हीं चार स्तंभों पर टिकी है. इसके अतिरिक्त भूविन्यास, सतम्भ, शिखर, कलश और चट्टानों की सतह पर आशुलेख की तरह उत्कीर्ण नहीं किए हुए हैं.

आज भी अधूरा है भोजपुर का शिव मंदिर

इतिहासकार बताते हैं कि भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण अधूरा है. कहा जाता है कि इस मंदिर के अधूरे होने के पीछे एक बड़ा कारण है. इस मंदिर को किसी वजह से एक ही रात में बनाया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सुबह होते ही इस मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया. कहते हैं उस वक्त छत के बनाए जाने का कार्य चल रहा था, लेकिन सूर्योदय होने के साथ ही मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, तब से ये मंदिर अधूरा ही है. हालांकि पुरातत्व विभाग ऐसी किसी भी घटना की पुष्टि नहीं करता है.

पांडवों से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

शिव मंदिर को लेकर एक और मान्यता सदियों से चली आ रही है. ऐसा कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण कार्य महाभारत काल से जुड़ा है. मान्यता है कि जब पांडव अज्ञातवास काट रहे थे तो वो यहां कुछ वक्त के लिए बसे थे. इसी दौरान पांडवों ने माता कुंती की पूजा के लिए एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग के विशालकाय पत्थर को भीम ने अपने हाथों से तैयार किया था, ताकि बेतवा नदी के पवित्र जल से स्नान के बाद माता कुंती भगवान शिव की आराधना कर सकें. बाद में इसी मंदिर का नाम आगे चलकर भोजेश्वर महादेव मंदिर पड़ गया.

इस्लाम के आगमन के पहले हुए था निर्माण

इतिहासकारों एवं पुरातत्विदों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम के आगमन के पहले हुआ था. अतः इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बनी अधूरी गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को प्रमाणित करती है. भले ही उनके निर्माण की तकनीक अगल हो. कुछ विद्धान इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत भी मानते हैं. इस मंदिर का दरवाजा भी किसी हिंदू इमारत के दरवाजों में सबसे बड़ा है.

एक मान्यता ये भी 

मान्यता ये भी है कि राजा भोज को कुष्ठ रोग हो गया था. एक साधु ने रोग का उपचार बताया कि यदि महाराज 365 जलधाराओं को 365 दिनों (एक वर्ष) में जोड़कर एक पवित्र जलाशय (Bhopal Lake) बनाएं और उस जल में एक विशेष मुहूर्त में स्नान करें, और नित्य शिव पूजन करें, तो उसे रोग से छुटकारा मिल सकता है. राजा भोज ने ऐसा ही किया और फिर भोजपुर के शिव मंदिर में नित्य भगवान शिव उपासना की, जिसके बाद राजा भोज ठीक हो गए. इसलिए आज भी श्रद्धालु बीमारियों से मुक्ति और लंबी उम्र की कामना लिए पहुंचते हैं. अब कहानियां जो भी हों, लेकिन भोजपुर का ये विशाल मंदिर आज भी अपनी अद्भुत वास्तुकला और भव्यता के लिए जाना जाता है. यहां की प्राकृतिक छटा सैलानियों को लुभाती है. 

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