सपा-कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग को लेकर खटास, यूपी विधानसभा उपचुनाव से दूरी बना सकते हैं राहुल गांधी!
Uttar Pradesh BY-Election: उत्तर प्रदेश में 13 नवंबर को होने वाले उपचुनावों में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. नौ सीटों पर होने वाले इस चुनाव ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के रिश्तों को तनावपूर्ण बना दिया है. सपा ने कांग्रेस के लिए अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीट छोड़ दी है, लेकिन कांग्रेस की अपेक्षाएं इससे कहीं अधिक है.
सीटों की खींचतान, 2 बनाम 5
कांग्रेस ने सपा से पांच सीटों की मांग की थी, यह सोचकर कि कम से कम तीन सीटें तो मिलेंगी. लेकिन सपा ने महज दो सीटें ही कांग्रेस को दी हैं, जिससे दोनों दलों के बीच दोस्ताना रिश्ते में दरार पैदा हो गई है. इस स्थिति में कांग्रेस ने यह संकेत दिया है कि वह किसी भी सीट पर उम्मीदवार उतारने से मना कर सकती है, जैसा कि उसने मऊ की घोसी सीट के उपचुनाव में किया था.
असंतोष के पीछे के कारण
कांग्रेस की नाराजगी के पीछे कई वजहें हैं. पहले तो, यूपी में कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा कमजोर है. दूसरी बात, जिन सीटों पर पार्टी को मौका मिला है, उनका चुनावी इतिहास उत्साहजनक नहीं है. गाजियाबाद एक शहरी सीट है, जो बीजेपी का मजबूत गढ़ मानी जाती है. वहीं, खैर सीट पर पिछले चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार 1500 वोट भी नहीं प्राप्त कर सका था.
यह भी पढ़ें: ‘NDA का मतलब नरेंद्र दामोदर दास का…’, PM मोदी के तारीफ में बोले शंकराचार्य, कहा- सबको जोड़ने वाला नेता चाहिए
कांग्रेस की रणनीति
कांग्रेस मिर्जापुर की मझवां और प्रयागराज की फूलपुर सीट पर दावेदारी कर रही थी, जहां जीत की संभावनाएं अधिक थीं. मझवां सीट से अजय राय के बेटे को उम्मीदवार बनाने की योजना थी, लेकिन सपा ने पहले ही अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. यह स्थिति कांग्रेस के लिए निराशाजनक है, क्योंकि वह बीजेपी से मुकाबला करते हुए मजबूत सीटों पर जीत की उम्मीद कर रही थी.
मिल्कीपुर सीट का विवाद
यूपी विधानसभा की कुल 10 सीटें रिक्त हैं, जिनमें से मिल्कीपुर को छोड़कर अन्य नौ सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. मिल्कीपुर सीट पर विवाद खड़ा है, जहां बाबा गोरखनाथ ने पूर्व विजेता अवधेश प्रसाद के निर्वाचन को कोर्ट में चुनौती दी है. यह याचिका पेंडिंग है, जिसके चलते चुनाव आयोग ने मिल्कीपुर के लिए चुनाव कार्यक्रम का ऐलान नहीं किया.
सपा और कांग्रेस के बीच की यह खींचतान निश्चित रूप से उपचुनावों पर गहरा असर डाल सकती है. सियासी दोस्ती की इस खटास ने दोनों दलों को नई रणनीतियों पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है. अब देखना यह है कि क्या कांग्रेस सपा के साथ अपने रिश्तों को सुधारने में सफल होगी या फिर यह तनाव बढ़ता जाएगा. यूपी की सियासत में आगे क्या होने वाला है, यह तो समय ही बताएगा.