महंगाई के जाल में फंसे ‘दास’! EMI के बोझ तले दबे रहेंगे लोग या मिल पाएगी राहत?
RBI Monetary Policy: बॉलीवुड के फिल्मी ड्रामे की तरह, भारतीय अर्थव्यवस्था का हाल भी कुछ ऐसा ही होता जा रहा है, जिसमें एक ओर महंगाई का डर और दूसरी ओर राहत की तलाश में लोग उम्मीदें लगाए हुए हैं. एक ओर RBI गवर्नर शक्तिकांत दास, जो महंगाई के खिलाफ कदम उठाने की बात करते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आम लोग जो अपनी EMI भरने में संघर्ष कर रहे हैं, उनके लिए इंतजार की घड़ी लंबी होती जा रही है. इस कहानी में दास का नाम जितना अहम है, उतना ही महंगाई का संकट. तो सवाल उठता है कि आखिर कब तक महंगाई के ‘दास’ बनकर रहने की मजबूरी होगी?
RBI के दबाव में राहत की उम्मीद
सितंबर और अक्टूबर में महंगाई के आंकड़े उफान पर थे और अब, दिसंबर की ओर बढ़ते हुए यह सवाल उठता है कि क्या महंगाई के खिलाफ आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास, पॉलिसी दरों में कटौती करेंगे, या फिर एक बार फिर से दरों को स्थिर रखेंगे? इस सवाल का उत्तर सिर्फ अर्थशास्त्रियों की ही नहीं, बल्कि आम जनता की नजरों में भी सबसे बड़ा है.
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की टीम ने सितंबर और अक्टूबर में महंगाई की जो तस्वीर देखी, उसके बाद से ये स्थिति और भी कठिन हो गई है. इस बार पॉलिसी रेट पर फैसला करना आरबीआई के लिए बेहद मुश्किल होगा, क्योंकि महंगाई के आंकड़े बेहद खराब थे. अब यह सवाल उठता है कि क्या आरबीआई 11वीं बार ब्याज दरों को स्थिर रखेगा, या फिर कम होने की उम्मीद है. खैर ये तो कल जब ऐलान होगा तभी पता चल पाएगा.
आरबीआई ने क्यों नहीं की कटौती?
आरबीआई की MPC (मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी) ने फरवरी 2023 के बाद से ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया. फरवरी 2023 में रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती की गई थी, और उसके बाद से वही दर कायम रही. इस दौरान महंगाई और ब्याज दरों की कटौती के बीच का संबंध भी अक्सर चर्चा का विषय बनता रहा है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और व्यापार मंत्री पीयूष गोयल समेत कई नेताओं ने भी ब्याज दरों में कटौती की बात कही थी, लेकिन महंगाई ने आरबीआई को एक बार फिर चिंता में डाल दिया.
मंदी का दबाव,GDP ग्रोथ में गिरावट
देश में मंदी का भी असर साफ दिखाई दे रहा है. भारत की जीडीपी ग्रोथ वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में केवल 5.4 प्रतिशत रही, जो दो सालों का सबसे कम आंकड़ा है. खासकर मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 2.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, लेकिन खपत और निजी निवेश में गिरावट ने चिंता को और बढ़ा दिया है. हालांकि कृषि क्षेत्र में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि ने राहत जरूर दी, लेकिन ओवरऑल आर्थिक स्थिति दबाव में बनी हुई है.
आ महंगाई मुझे मार!
महंगाई की स्थिति एक बार फिर आरबीआई के लिए सिरदर्द बन चुकी है. अक्टूबर में महंगाई दर 6.2 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो पिछले साल की तुलना में काफी अधिक थी. यह मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी के कारण हुआ था. हालांकि, नवंबर में महंगाई कम होने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन फिर भी इसे आगे नियंत्रण में रखना बेहद जरूरी है. एसबीएम बैंक इंडिया के ट्रेजरी प्रमुख मंदार पितले ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा कि महंगाई पिछले दो महीनों से लक्ष्य सीमा के ऊपरी स्तर पर है, जिससे दरों में कटौती की गुंजाइश सीमित हो गई है.
बढ़ती लिक्विडिटी ने भी बढ़ाई चिंता
इसके अलावा, बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की समस्या भी बढ़ी है. डॉलर के मुकाबले रुपये में भारी गिरावट और उधारी की बढ़ती लागत ने बैंकिंग सिस्टम को और जटिल बना दिया है. इसके परिणामस्वरूप, सिस्टमेटिक लिक्विडिटी को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं, और विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई को इन दबावों को कम करने के लिए CRR (कैश रिजर्व रेट) में कटौती या ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) जैसे उपायों पर विचार करना चाहिए.
क्या होगा अगला कदम?
विश्लेषक इस पर बंटे हुए हैं कि क्या आरबीआई इस बैठक में रेपो रेट में कटौती करेगा या फिर सतर्क रुख अपनाएगा. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अबकी बार दर में कटौती की संभावना बहुत कम है, क्योंकि महंगाई अब भी चिंता का विषय बनी हुई है. वहीं, कुछ लोग यह सुझाव दे रहे हैं कि आरबीआई वर्तमान दर को बनाए रखते हुए भविष्य में दरों में कटौती का संकेत दे सकता है.
यह भी पढ़ें: क्या CM बनने के लिए शाह के सामने गिड़गिड़ाए थे शिंदे? ‘सामना’ में दावे से महाराष्ट्र की राजनीति में सनसनी
आखिरकार, किसे मिलेगी राहत?
अगर हम इस सारी स्थिति को देखें, तो एक बात साफ है – आम आदमी की चिंता बढ़ती जा रही हैं. महंगाई, ब्याज दरों और मंदी के बीच वह कभी न खत्म होने वाले इंतजार में हैं कि आखिर कब उन्हें राहत मिलेगी. ईएमआई भरने में जूझ रहे लोगों के लिए हर दिन एक नई चुनौती लेकर आता है. सरकार और आरबीआई की कोशिशें जारी हैं, लेकिन क्या यह समाधान मिलने वाला है, या फिर महंगाई की दासता के बीच आम लोग यूं ही फंसे रहेंगे?
इसमें कोई दो राय नहीं कि महंगाई एक विशाल समस्या बन चुकी है, और आरबीआई के पास उसे नियंत्रित करने के लिए हर कदम उठाने का जिम्मा है. हालांकि, जनता को सिर्फ इंतजार ही करना होगा कि क्या उनके लिए राहत की कोई उम्मीद हो सकती है या नहीं. फिलहाल तो यही सवाल सबसे अहम है: क्या महंगाई के इस संकट से बाहर निकलने का कोई रास्ता है?