Lok Sabha Election 2024: चुनावी महासमर में इन दिग्गजों पर दांव न लगा क्या कांग्रेस ने कर दी बड़ी चूक?
Lok sabha Election 2024: देश में चुनावी बिगुल बज चुका है. निर्वाचन आयोग ने 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. चुनाव में सिर्फ महीने भर का ही समय बचा है. आगामी चुनाव में कांग्रेस BJP से मुकाबले के लिए तैयार है, लेकिन पार्टी के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है. पार्टी के दिग्गज नेता चुनाव लड़ने से परहेज करते दिख रहे हैं. पार्टी के कुछ नेता अपनी उम्र का हवाला दे रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि नई पीढ़ी को मौका मिलना चाहिए.
केंद्रीय राजनीति के बड़े नेताओं ने किया मना
इनमें पार्टी के वह कद्दावर नेता शामिल हैं, जो केंद्रीय राजनीति में बड़ा चेहरा माने जाते हैं. यह नेता अपने-अपने गढ़ के साथ ही विरोधी दलों का किला ढहाने का भी माद्दा रखते हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने रैलियों में कह रहे हैं कि डरो नहीं, लड़ो, लेकिन पार्टी के दिग्गज नेता इस बात परहेज करते दिख रहे हैं. कमलनाथ से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे, दिग्विजय सिंह, अशोक गहलोत और सचिन पायलट जैसे अनुभवी नेता चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं. यह नेता ऐसे हैं जो अपने परंपरागत सीट के साथ ही विरोधी दल के प्रत्याशी के गढ़ में भी बड़ी चुनौती दे सकते हैं.
मल्लिकार्जुन खड़गे
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को सोलिल्लादा सरदारा कहा जाता है. जिसका मतलब है कभी न हारने वाला नेता. दक्षिण के में उनके राजनीतिक कद को देखते हुए जनता ने ही उन्हें इस नाम से नवाजा है. साल 2014 के चुनावों में जब देश में मोदी लहर थी, तब भी वह अपने गढ़ कर्नाटक की कलबुर्गी सीट जीतने में कामयाब रहे थे. पहली बार साल 2009 लोकसभा चुनाव में उन्होंने पहली बार इस सीट से जीत दर्ज कर केंद्रीय राजनीति में कदम रखा. इससे पहले तक वह 1972 से 2008 तक लगातार गुरमित्कल सीट से विधायक चुने गए. अपने राजनीतिक जीवन सिर्फ एक बार वह चुनाव साल 2019 में हारे हैं, लेकिन उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देते हुए इस चुनाव से किनारा कर लिया. अगर वह किसी सीट से चुनावी मैदान में होते तो BJP के लिए मुश्किल हो सकती थी.
अशोक गहलोत
राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हैं. राजनीति की शुरुआत उन्होंने लोकसभा चुनाव से ही की थी. वह 1980 से लगातार 1989 जोधपुर सीट से सांसद चुने गए. 1989 में के बाद वह 1991 से लेकर 1999 तक उन्होंने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. उनके बाद कांग्रेस सिर्फ जोधपुर सीट पर एक बार 2009 में ही चुनाव जीत पाई है. गहलोत के बाद से इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा खत्म हो गया. वहीं वह साल 1998 से उन्होंने सरदारपुरा विधानसभा सीट को अपना किला बना लिया. ऐसे में जोधपुर से अगर गहलोत चुनावी मैदान में होते तो BJP से कांग्रेस का कड़ा मुकाबला देखने को मिलता, लेकिन वह भी उम्र का हवाला देकर चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं.
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कमलनाथ
कमलनाथ को कांग्रेस का कद्दावर नेता माना जाता है. केंद्र की राजनीति में उनका दबदबा भी अच्छा खासा है. मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट कमलनाथ की परंपरागत सीट मानी जाती है. इस सीट पर कमलनाथ साल 1984 से लोकसभा चुनाव जीतते आ रहे हैं. साल 2014 वह आखिरी बार इस सीट पर चुनाव लड़े थे. इस बीच छिंदवाड़ा सीट पर BJP सिर्फ एक बार ही 1997 में चुनाव जीत सकी थी. अब कमलनाथ ने अपनी परंपरागत सीट को 2019 में अपने बेटे नकुलनाथ कौ सौंप दी है. कमलनाथ ने भी चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. ऐसे में वह छिंदवाड़ा के अलावा किसी और सीट से भी चुनाव लड़ते तो BJP को सीधा टक्कर दे सकते थे.
दिग्विजय सिंह
मध्य प्रदेश की राजनीति में दूसरा प्रमुख नाम दिग्विजय सिंह का आता है. 1969 में 22 साल की उम्र में अपनी राजनीतिक सफर की शुरूआत करने वाले दिग्विजय सिंह भले ही 2019 लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन एमपी से लेकर केंद्र तक की राजनीति में आज भी उनका दबदबा माना जाता है. बता दें कि राजगढ़ लोकसभा सीट और राधौगढ़ विधानसभा सीट उनकी परंपरागत सीट मानी जाती है. वह साल 1984 से लेकर 1994 तक राजगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए, इसके बाद वह विधानसभा चुनाव में उतरे और राधौगढ़ विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. 2014 में राज्यसभा चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया था. इसके बाद वह 2019 में वह भोपाल सीट से चुनाव में उतरे लेकिन BJP उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर ने उन्हें हरा दिया. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर वह एमपी की किसी सीट से चुनाव लड़ते तो BJP को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती.
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सचिन पायलट
राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत के बाद सबसे ज्यादा दबदबे वाले नेताओं के सचिन पायलट का नाम आता है. 2004 में पहली बार दौसा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे. इसके बाद वह 2014 लोकसभा चुनावों में मोदी लहर में BJP उम्मीदवार से चुनाव हार गए. इसके बाद से वह टोंक सीट से विधायक चुने गए हैं. इसके बाद 2019 में जब उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाने की बात कही गई तो उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि जो देशभर में उनकी रैलियां प्रस्तावित की गई हैं उन्हें कम किया जाए. तभी वह अपने क्षेत्र पर फोकस करेंगे. हालांकि वह फिर भी चुनाव नहीं लड़े. इस बार अगर सचिन पायलट जैसे कद्दावर नेता लोकसभा चुनाव लड़ते तो उनके युवा समर्थकों का जोश भी दोगुना हो जाता और भाजपा उम्मीदवार को जीत के लिए मशक्कत करनी पड़ती.