गाजीपुर, कन्नौज और बदायूं…यूपी की इन 3 सीटों पर फतह बीजेपी के लिए चुनौती
Lok Sabha Election 2024: कहा जाता है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है. लिहाजा राज्य में इन दिनों चुनावी शोर है. पीएम मोदी भी अपने मिशन ‘अबकी बार 400 पार’ को सफल बनाने के लिए धुआंधार रैली, जनसभा और रोड शो कर रहे हैं. बीजेपी आश्वस्त है कि पार्टी को वही पुराना जनाधार मिलेगा. हालांकि, ‘इंडिया ब्लाक’ के नेता भी बीजेपी और NDA को रोकने के लिए नए-नए सियासी समीकरण बना रहे हैं. एक तरफ जहां बीजेपी राज्य की 80 सीटें जीतने का दावा कर रही है. विपक्षी पार्टियों का भी ऐसा ही कुछ कहना है. इन सभी राजनीतिक बातों और समीकरणों के बीच यूपी की 3 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी की राह आसान नहीं है. वो सीटें हैं गाजीपुर, कन्नौज और बदायूं. आइये आज इन्हीं सीटों का पूरा गणित जानते हैं.
गाजीपुर में बीजेपी की परीक्षा
बीजेपी ने गाजीपुर लोकसभा सीट से जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के बेहद करीबी पारस नाथ राय को टिकट दिया है. समाजवादी पार्टी की ओर से इस सीट पर मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी मैदान में है. हालांकि, इस चुनाव में ये भी चर्चा है कि अफजाल अपनी बेटी नुसरत को इस सीट से चुनाव लड़ा सकते हैं. गाजीपुर लोकसभा सीट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटी हुई है. 2019 के चुनाव में पीएम मोदी के नाम की लहर के बावजूद इस सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा मिलकर चुनाव लड़े थे, जिसमें बसपा के अफजाल अंसारी की जीत हुई थी. हालांकि इससे पहले 2014 में जब सपा-बसपा अलग-अलग चुनाव लड़े तो यहां बीजेपी को जीत मिली थी. इस बार भी सपा गठबंधन में चुनाव लड़ रही है लेकिन बसपा के साथ नहीं बल्कि कांग्रेस के साथ.
गाजीपुर सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी लेकिन अब हालात बदल गए हैं. यहां सपा, बसपा और बीजेपी तीनों दलों ने जीत हासिल की है. इसके अलावा इस सीट पर मुख्तार परिवार का बोलबाला रहा है. मुख्तार अंसारी को गाजीपुर का ‘बाजीगर’ कहा जाता था. खुद मुख्तार अंसारी पांच बार विधायक चुना गया. जेल में रहते हुए बेटे और भतीजे को विधायक बनवाया. मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी 2019 के लोकसभा चुनाव में गाजीपुर से सांसद चुने गए. अब मुख्तार अंसारी इस दुनिया में नहीं रहा. लेकिन प्रभाव अब भी है. इस बार देखना ये होगा कि क्या बीजेपी नेता पारस नाथ राय यहां से पार्टी को जीत दिला पाते हैं या नहीं.
कन्नौज में भी चुनौती
लगातार सात चुनाव में मिली जीत के बाद पिछली बार भाजपा से कन्नौज को गंवाने वाली सपा फिर से इसे वापस हासिल करने की जुगत में है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस सीट से खुद ही चुनावी मैदान में उतरे हैं. जबकि उन्हें टक्कर देने के लिए भाजपा ने फिर से सुब्रत पाठक को ही मैदान में उतारा है. पिछली बार इस सीट को सपा से हासिल करने वाले सुब्रत पाठक सपा पर लगातार हमला बोल रहे हैं. इन दोनों के बीच बसपा ने इमरान बिन जफर को मैदान में उतार रखा है.
वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा ने पहली बार सपा को कड़ी टक्कर दी थी. तब मौजूदा सांसद डिंपल यादव बमुश्किल अपनी सीट बचा सकी थीं. इसके बाद वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक ने बेहद कड़े मुकाबले में डिंपल यादव से यह सीट झटक ली थी. वर्ष 2014 में बसपा मैदान में रहकर तीसरे नंबर पर रही थी. वर्ष 2019 में सपा संग गठबंधन की वजह कर वह मैदान से बाहर थी. इस बार बसपा फिर से ताल ठोक रही है.
बदायूं लोकसभा सीट
उत्तर प्रदेश के बदायूं में लोकसभा चुनाव को लेकर भी हलचल तेज है. गंगा और रामगंगा नदी के बीच बसे बदायूं संसदीय क्षेत्र में इस बार के चुनाव में राजनीति गरमाई हुई है. समाजवादी पार्टी ने तीन बार टिकट में हेर फेर करते हुए अब शिवपाल यादव के बेटे आदित्य को यहां से टिकट दिया है. हालांकि, भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्य पिता स्वामी प्रसाद मौर्य की राजनीति का शिकार होती दिखी. उनका टिकट कट गया है.
यादव-मुस्लिम मतों की एकजुटता के चलते छह बार संसदीय सीट पर कब्जा रहने की वजह से बदायूं सपा का गढ़ माना जाता है. साल 2019 में सपा-बसपा मिलकर लड़े थे, पर जीती भाजपा थी. भाजपा अब कब्जा बनाए रखने व सपा-बसपा को रोकने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है. पार्टी की ओर से दुर्विजय सिंह शाक्य यहां से चुनाव लड़ रहे हैं.