Chhattisgarh: बिलासपुर में 10 करोड़ रुपए की लागत से बना ट्रैफिक पार्क बदहाल, स्टेच्यू व ट्रेन समेत अन्य चीजें भी टूटी

Chhattisgarh News: बिलासपुर में 10 करोड़ रुपए की लागत से तैयार छत्तीसगढ़ का इकलौता ट्रैफिक पार्क अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. साल 2010 में इस ट्रैफिक पार्क के बनाने का एकमात्र उद्देश्य सड़क हादसों को रोकना और ट्रैफिक के प्रति लोगों को जागरूक करना था.
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Chhattisgarh News: बिलासपुर में 10 करोड़ रुपए की लागत से तैयार छत्तीसगढ़ का इकलौता ट्रैफिक पार्क अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. साल 2010 में इस ट्रैफिक पार्क के बनाने का एकमात्र उद्देश्य सड़क हादसों को रोकना और ट्रैफिक के प्रति लोगों को जागरूक करना था. जब बना तब थोड़ा काम हुआ लेकिन उसके बाद से मेंटेनेंस के अभाव में आज तक यह दोबारा संवर नहीं पाया है. यही कारण है कि सड़क हाथ से बढ़ते जा रहे हैं, और साल में लगभग हजार लोगों की मौत सड़क हादसों के कारण हो रही है, लेकिन फिर भी कोई इसकी तरफ ध्यान देने को तैयार नहीं है. यही वजह है कि यहां सड़क उधड़ चुकी हैं. बाइक और कार सवार को ट्रैफिक के लिए जागरूक करने के लिए तैयार की गई. ट्रैफिक इंस्पेक्टर्स की मूर्ति टूट-फूट कर जमीन पर गिरी हुई है, और कुल मिलाकर चारों तरफ बर्बादी के हालात हैं.

सबसे बड़ी बात यह है कि आज इसे कोई देखने वाला नहीं है. जिले के आरटीओ बताते हैं कुछ समय पहले इसे हीरो कंपनी ने गोद लिया था तब यह अनुबंध तैयार किया गया कि यहां बाइक, कार सवारों को सड़क पर चलने के नियम कानून बताए जाएंगे. और इसके बाद ही उन्हें आरटीओ से लाइसेंस जारी होगा. इसके अलावा यहां आरटीओ से लाइसेंस जारी करने के पहले सड़कों पर कर और बाइक सवारों को प्रशिक्षित करने के बाद ही यह दस्तावेज उन्हें देने की बात थी, लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि यहां बने भवन पूरी तरह कंडम हो चुके हैं. जिनमें कोई नहीं बैठता. इसके अलावा यहां बने रेस्टोरेंट कैंटीन प्रशासनिक भवन और लोगों को जागरूक करने के लिए तैयार किए गए तमाम इंतजाम खत्म हो चुके हैं और इस पर ताला जड़कर इसे बंद रखना प्रशासन के अधिकारियों की मजबूरी बन गई है लोग बताते हैं कि पिछले 10 साल में कभी भी उन्होंने किसी भी वाहन चालक को यहां प्रशिक्षित होते नहीं देखा और ना ही किसी दूसरी तरह की कोई गतिविधि हुई है यही कारण है कि 10 करोड रुपए खर्च कर तैयार किए गए बिलासपुर के इसी इकलौते ट्रैफिक पार्क को बनाने के उद्देश्य पर ही सवाल उठने लगा है.

चारों तरफ झाड़, नो मेंटेनेंस ना कोई दूसरी बातें

ट्रैफिक पार्क के भीतर घुसने पर चारों तरफ झाड़ दिखते हैं. सड़क की डिवाइडरों पर अनचाहे पेड़ पौधे उठ चुके हैं. ट्रैफिक अधिकारियों के प्रतिमाएं लगी थी, जो उखड़ कर जमीन पर गिर गई है. लाखों करोड़ों की लागत से तैयार किए गए फाउंटेन पूरी तरह बंद है. सिग्नल जर्जर हो चुके हैं. जो पिछले कई साल से बंद पड़े हैं. इसके अलावा झूले और फिसल पट्टी भी धूल खा रही है. कुल मिलाकर यहां पहुंचने पर बर्बाद ट्रैफिक पार्क की कहानी कोई भी अपनी आंख से आसानी से देख सकता है.

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 हीरो कंपनी ने लिया था गोद

साल 2010 में जब यह ट्रैफिक पार्क शुरू हुआ तब मेंटेनेंस को लेकर बड़ी दिक्कत होगी इसके बाद ट्रैफिक विभाग ने हीरो कंपनी के साथ अनुबंध कर इसे उसे संचालित करने के लिए दे दिया लेकिन कुछ साल पहले हीरो कंपनी ने भी यहां का अनुबंध खत्म कर दिया। जब हीरो कंपनी ने यहां अनुबंध लिया था तब एक एक्सपर्ट कर्मचारी की ड्यूटी लगाई थी जिसे कर और बाइक के बारे में सब कुछ बताया गया था और उसे ही लोगों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी दी गई थी. कुल मिलाकर 4 साल बाद हीरो कंपनी ने इसे चलाने से इनकार कर दिया और इसके बाद आज तक कोई इसकी मरम्मत पर ध्यान नहीं दे रहा है.

आखिर कौन देगा ध्यान?

साल 2010 में जब छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की रमन सिंह की सरकार थी तब इस ट्रैफिक पार्क का निर्माण किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे बीजेपी के लोगों ने ही इस पर ध्यान देना बंद कर दिया और कांग्रेस की सरकार आने के बाद यह बुरी तरह बर्बाद हो गई. अब सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बीजेपी की सरकार इस छत्तीसगढ़ के इकलौते ट्रैफिक पार्क को संवारने पर ध्यान देगी या फिर सब कुछ जो है पुरानी तर्ज पर चलता रहेगा. और कबाड़ होती है ट्रैफिक पार्क अपनी दुर्दशा की बात खुद लोगों को बताएगी.

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