“कद्दू भी नहीं फोड़ पाई…”, कांग्रेस-AAP की आपसी लड़ाई ने BJP को दिलाई दिल्ली,’सामना’ में शिवसेना ने कसा तंज

अब बात करते हैं इंडिया गठबंधन के भविष्य की, जिसे दिल्ली चुनाव के बाद से लेकर कई बार सवालों के घेरे में देखा गया है. कांग्रेस और AAP के बीच के संघर्ष ने इस गठबंधन की एकजुटता और सामूहिक लक्ष्य को पूरी तरह से चुनौती दी है. जब दो प्रमुख दल आपस में लड़ रहे थे, तो भाजपा को इस लड़ाई में आसानी से फायदा हुआ और उसका राजनीतिक ग्राफ बढ़ा.
केजरीवाल और राहुल गांधी

केजरीवाल और राहुल गांधी

Delhi Election Result: दिल्ली चुनाव के नतीजे आए और राजनीतिक सरगर्मियां फिर से तेज हो गईं. आम आदमी पार्टी की हार के बाद शिवसेना ने मुखपत्र ‘सामना’ के जरिए कांग्रेस पर सीधा हमला बोला है. ‘सामना’ में सवाल उठाए गए हैं, “जब पूरी दिल्ली चुनावी लड़ाई में एकजुट होने की उम्मीद कर रही थी, तब कांग्रेस और AAP एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में उलझे रहे. इसका फायदा किसे हुआ? जवाब स्पष्ट है—बीजेपी. लेकिन क्या सिर्फ कांग्रेस ही दोषी है, या इस चुनावी हार के पीछे और भी वजहें हैं? क्या इंडिया गठबंधन के सपने खत्म हो चुके हैं या अब भी इस गठबंधन के सामने मौका है अपनी राजनीति की दिशा को सही करने का? सामना के तंज और सवालों ने इस पूरी स्थिति को एक नई दिशा दी है.

“कांग्रेस ने कद्दू भी नहीं फोड़ा”

‘सामना’ में कहा गया कि कांग्रेस ने दिल्ली में “कद्दू भी नहीं फोड़ा”. यानी कांग्रेस ने न तो खुद कोई प्रभावी चुनावी रणनीति बनाई और न ही AAP को चुनावी जीत दिलवाने में मदद की. ‘सामना’ ने यह आरोप भी लगाया कि कांग्रेस ने AAP और बीजेपी के बीच की लड़ाई में गहरे रूप से हस्तक्षेप किया और इस लड़ाई में कांग्रेस का अस्तित्व संकट में पड़ गया. कांग्रेस और AAP दोनों एक-दूसरे के खिलाफ बुरी तरह से उलझे थे, जिससे मोदी-शाह की तानाशाही के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का अवसर पूरी तरह से खो गया.

‘सामना’ में कांग्रेस के नेताओं को सीधे तौर पर चुनौती दी गई है. संपादकीय में लिखा गया है कि अगर कांग्रेस यह मानती है कि AAP को जिताना उनकी जिम्मेदारी नहीं है, तो यह अहंकार और सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ लड़ाई के बजाय एक आत्मघाती नीति को दर्शाता है. पार्टी के भीतर एक गहरी फूट है, जिससे ना केवल दिल्ली के चुनाव परिणाम प्रभावित हुए, बल्कि कांग्रेस की साख पर भी सवाल उठने लगे हैं.

उमर अब्दुल्ला की टिप्पणी का समर्थन

‘सामना’ ने उमर अब्दुल्ला के उस बयान को सही ठहराया गया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “आपस में लड़ो और एक-दूसरे को खत्म करो, लेकिन इसका फायदा मोदी और शाह को ही होगा.” इस बयान में उन्होंने जो गुस्सा और नाराजगी जाहिर की थी, उसे सामना ने सही ठहराया.

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ठगे गए अन्ना हजारे!

‘सामना’ ने दिल्ली में अन्ना हजारे के आंदोलन का जिक्र भी किया, किसी समय केजरीवाल की सबसे बड़ी ताकत थी. अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने केजरीवाल को राष्ट्रीय पहचान दिलाई थी. लेकिन अब, अन्ना हजारे के चेहरे पर एक तरह की निराशा झलकती है. संपादकीय में कहा गया कि अन्ना हजारे को जो उम्मीदें थीं, वे अब पूरी नहीं हो रही हैं. अन्ना के अनुसार, केजरीवाल के विचार और उनका चरित्र शुद्ध नहीं हैं, और मतदाता भी उनके बारे में यह सोचने लगे हैं कि वे क्या करेंगे.

अगर किसी समय अन्ना हजारे और केजरीवाल एक ही धारा में थे, तो अब उनकी रास्ते अलग हो गए हैं. इसका मतलब है कि केजरीवाल की छवि में एक गहरी दरार आ चुकी है.

क्या अब भी कोई उम्मीद बची है?

अब बात करते हैं इंडिया गठबंधन के भविष्य की, जिसे दिल्ली चुनाव के बाद से लेकर कई बार सवालों के घेरे में देखा गया है. कांग्रेस और AAP के बीच के संघर्ष ने इस गठबंधन की एकजुटता और सामूहिक लक्ष्य को पूरी तरह से चुनौती दी है. जब दो प्रमुख दल आपस में लड़ रहे थे, तो भाजपा को इस लड़ाई में आसानी से फायदा हुआ और उसका राजनीतिक ग्राफ बढ़ा.

इंडिया गठबंधन का गठन उन दलों ने किया था, जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीति के खिलाफ एकजुट होना चाहते थे. लेकिन अब यह गठबंधन अपनी ताकत खोता जा रहा है. कांग्रेस और AAP का आपसी संघर्ष इस गठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है. अगर कांग्रेस और AAP आपस में लड़ते रहेंगे, तो यह गठबंधन सिर्फ नाम का ही रह जाएगा.

आखिरकार, अगर इंडिया गठबंधन को सफलता पाना है, तो उसे अपनी अंदरूनी समस्याओं को सुलझाना होगा. गठबंधन में शामिल सभी दलों को यह समझना होगा कि अगर आपसी लड़ाई जारी रही, तो यह अंततः भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगी.

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