मणिपुर के CM एन. बीरेन सिंह ने दिया इस्तीफा, राज्य में राजनीतिक हलचल तेज, क्या डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश में है BJP?
एन बीरेन सिंह
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह (N. Biren Singh) ने आखिरकार अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, जिससे राज्य में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. उनका यह कदम उस समय आया है जब मणिपुर में जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है. मई 2023 से जारी इस हिंसा में 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं. इस स्थिति के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे ने कई सवाल उठाए हैं.
इस्तीफे का कारण
एन. बीरेन सिंह का इस्तीफा एक ऐसे समय में आया है जब मणिपुर विधानसभा सत्र 10 फरवरी से शुरू होने जा रहा है. इस सत्र में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की अटकलें थीं. इसके अलावा, मुख्यमंत्री और उनके कुछ मंत्रियों के इंफाल से बाहर जाने के बाद यह अफवाहें भी उड़ीं कि वे दिल्ली बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात करने गए हैं.
हालांकि, मुख्यमंत्री ने बाद में खुद ही सोशल मीडिया पर यह स्पष्ट किया कि वे महाकुंभ के लिए प्रयागराज गए थे. लेकिन बाद में वो दिल्ली में अमित शाह सहित बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात भी की. बीरेन सिंह के इस्तीफे को लेकर कांग्रेस और विपक्ष ने आरोप लगाया कि वे राज्य में जातीय संघर्ष को संभालने में नाकाम रहे हैं और इसलिए अब बीजेपी नेतृत्व को यह कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा है.
मणिपुर की राजनीतिक स्थिति
मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीटें हैं, जिनमें से बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास 43 सीटें हैं. इसके अलावा, नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) और जेडीयू का भी बीजेपी को समर्थन प्राप्त है. विपक्ष के पास 16 सीटें हैं, जिसमें कांग्रेस, नेशनल पीपुल्स पार्टी, निर्दलीय और केपीए (KPA) शामिल हैं. केपीए ने अगस्त 2023 में बीरेन सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिससे सरकार की स्थिरता पर सवाल उठने लगे थे. बीजेपी के कुछ असंतुष्ट विधायक और कांग्रेस द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात भी सामने आई है, जिससे मुख्यमंत्री के पद से उनकी विदाई की संभावना और बढ़ गई थी.
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मणिपुर की स्थिति
बीरेन सिंह ने जातीय हिंसा को समाप्त करने और राज्य में सामाजिक एकता लाने का प्रयास किया था, लेकिन इन कोशिशों में वे सफल नहीं हो सके. मणिपुर लगातार जल रहा है. जातीय संघर्ष ने मणिपुर के पहाड़ी जिलों और इंफाल घाटी में गहरे विभाजन पैदा कर दिए हैं. कुकी-ज़ो आदिवासी समुदाय और मैतेई समुदाय के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. बीरेन सिंह को मैतेई समुदाय का प्रबल समर्थक माना जाता है, जिससे यह भी अटकलें लगाई गईं कि उनका इस्तीफा विशेष रूप से इस समुदाय के बीच बढ़ते असंतोष के कारण आया है.
आगे क्या होगा?
बीरेन सिंह का इस्तीफा राज्य की राजनीति में नई दिशा का संकेत दे सकता है. उनकी विदाई के बाद मणिपुर में बीजेपी नेतृत्व के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा. बीजेपी को अब अपनी सरकार को बनाए रखने के लिए न केवल विधानसभा में अपने समर्थकों को एकजुट करना होगा, बल्कि राज्य की स्थिति को सामान्य बनाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. विपक्ष, खासकर कांग्रेस और एनपीएफ, इस मौके का फायदा उठाने के लिए तैयार हैं और वे अब मणिपुर की राजनीतिक दिशा को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि मणिपुर के आगामी विधानसभा सत्र में क्या होता है, और क्या नए नेतृत्व के साथ राज्य में शांति और स्थिरता बहाल हो पाएगी. बीरेन सिंह के इस्तीफे ने मणिपुर की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू कर दिया है, और आगामी दिनों में यह देखना होगा कि राज्य की सरकार किस दिशा में आगे बढ़ती है.