MP News: बाणसागर परियोजना में 1620 करोड़ का भ्रष्टाचार, MP के अलावा UP-बिहार में भी घोटाला, दोषी इंजीनियर की हो चुकी मौत, तीन से ही होगी वसूली
Bhopal: मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार के साझे की बाणसागर की परियोजना में 1620 करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है. देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इस योजना की नीव मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और बिहार में एक साथ रखी थी. लाखों लोगों और किसानों को पानी बेहतर मिल सके और इससे बिजली का उत्पादन भी हो. इसलिए इस योजना के लिए विशेष पैकेज भी दिया था. कई सालों के बाद बाढ़ सागर परियोजना के घोटाले में 15 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किया गया है लेकिन अभी तक जल संसाधन विभाग के तीन इंजीनियरों से कुछ राशि की वसूली का निर्णय लिया है. ऐसा करके परियोजना में हुए भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश की गई है.
गौरतलब है कि 1620 करोड़ की बाणसागर परियोजना में हुए घोटाले में 15 अधिकारियों को जिम्मेदार माना गया था लेकिन 9 इंजीनियरों के रिटायर होने और तीन की मौत होने पर सिर्फ 3 इंजीनियरों की पेंशन से 10 एवं 20 प्रतिशत राशि की वसूली करने का निर्णय सरकार ने लिया है. जल संसाधन विभाग ने रिटायर अधिकारियों को भी चार साल से अधिक समय होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया. जबकि इस दौरान घोटाले में सरकार 11.36 करोड़ जुर्माना वसूल कर सकती थी.
गौरतलब है कि बाणसागर परियोजना, मप्र में गंगा बेसिन में स्थित सोन नदी पर बनी एक बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है. इस परियोजना की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने रखी थी. बाणसागर बांध से मप्र, उत्तर प्रदेश और बिहार को जल बंटवारा होता है. यह बांध मप्र में 2,490 वर्ग किमी, उत्तर प्रदेश में 1,500 वर्ग किमी और बिहार में 940 वर्ग किमी के क्षेत्र में सिंचाई करता है. यह मप्र में 425 मेगावाट बिजली उत्पादन भी करता है.
घोटाले में 15 दोषी
अधीक्षण यंत्री एपी सिंह, एसबीएस परिहार, कार्यपालन यंत्री डीएल वर्मा, लेखाअधिकारी जेपी वर्मा, अधीक्षक आरपी दुबे, सहायक वर्ग एक महेश शर्मा के अलावा तत्कालीन सीई केदारनाथ अग्रवाल, प्रमुख अभियंता केसी प्रजापति, सीई एचके मारू, व्हीके त्रिपाठी, अधीक्षण यंत्री एमपी मिश्रा, उपयंत्री एससी जैन तथा एसके गौतम को प्रथम दृष्ट्या दोषी ठहराया गया. जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, इन 15 अधिकारियों में से तत्कालीन ईएनसी केसी प्रजापति, कार्यपालन यंत्री रहे एपी सिंह तथा लेखाधिकारी जेपी वर्मा का निधन होने की वजह से इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. वहीं तत्कालीन सीई केदारनाथ अग्रवाल, तत्कालीन सीई एसके पाठक, व्हीके त्रिपाठी, एचके मारू, एमपी चतुवेर्दी, एमपी मिश्रा, एसबीएस परिहार, आरपी दुबे, एससी जैन के रिटायर हो जाने और रिटायरमेंट में चार साल से अधिक समय बीत जाने से इन्हें भी छोड़ दिया गया.
परियोजना में इस तरह किया घोटाला
बाणसागर परियोजना के मुख्य बांध के डाउन स्ट्रीम में एनर्जी डेसिपेशन अरेंजमेंट के रोलर बकेट की क्षति होने पर इसे ठीक कराने के लिए वर्ष 2007 में टेंडर किए गए थे. तत्कालीन समय में टेंडर से अधिक 62.52 प्रतिशत दर आने की वजह से टेंडर निरस्त कर दिया गया. बाद में 2009 में टेंडर करने पर इसकी दर 49.45 प्रतिशत अधिक एसओआर दर आई. इसे मंजूरी देने से सरकार को 6.89 लाख रुपए की क्षति हुई. इसके अलावा रोलर बकेट के नुकसान पर लंपसम टेंडर पर अगस्त 2007 से 2012 तक एपाक्सी ट्रीटमेंट कराया गया. जबकि एपॉक्सी ट्रीटमेंट के कायों की दर विभागीय रुपए 3 हजार घनमीटर के स्थान पर एक लाख 35 हजार रुपए घनमीटर के हिसाब से कार्य कराया गया. इससे अधिक दर का प्राक्कलन तैयार किया गया. बताया जाता है कि परियोजना की पुनरीक्षित प्रशासकीय स्वीकृत 18 मई 2013 को 1620 करोड़ दी गई थी, जिसमें रोलर बकेट ट्रीटमेंट, रिटेनिंग वॉल के निर्माण, गेज डिस्चार्ज साइट आदि कार्यों के लिए 9.49 करोड़ का प्रावधान किया गया, लेकिन इंजीनियरों ने सिर्फ एपॉक्सी ट्रीटमेंट कराने पर ही 11 करोड़ की निविदा स्वीकृत करते हुए 11.36 करोड़ रुपए खर्च कर दिए और स्वीकृत राशि से अधिक पैसा खर्च करने की प्रशासकीय स्वीकृति सरकार से नहीं ली गई.