क्या UP में टूटने वाला है इंडी गठबंधन? उपचुनाव में दो सीट मिलने से खुश नहीं है कांग्रेस, अखिलेश के सामने रखी ये शर्त

दरअसल, दोनों ही पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे में झगड़े का कारण यह है कि दोनों के वोट बैंक एक ही है. मुस्लिम बहुल एरिया में दोनों को लगता है कि उनकी जीत पक्की है.
राहुल गांधी और अखिलेश यादव

राहुल गांधी और अखिलेश यादव

UP By-Election: उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव से पहले कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं. सपा ने गाजियाबाद और खैर सीटें देने की घोषणा की है, लेकिन कांग्रेस इस फैसले से संतुष्ट नहीं है. इसके अलावा, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महाराष्ट्र में गठबंधन तय होने से पहले ही अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार शुरू कर दिया है.

सीटों का विवाद

सपा ने हाल ही में गाजियाबाद सदर और खैर सीट कांग्रेस को सौंपने का ऐलान किया है. दूसरी ओर कांग्रेस फूलपुर सीट पर भी अपनी दावेदारी जता रही है, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है. सूत्रों के अनुसार, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने श्रीनगर में उमर अब्दुल्ला के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान इस मुद्दे पर अखिलेश यादव अनौपचारिक बातचीत की थी.

कांग्रेस की रणनीति

कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे, अजय राय और आराधना मिश्रा सपा के नेताओं के संपर्क में हैं, लेकिन सपा केवल दो सीटें देने पर अड़ी हुई है. चर्चा है कि गांधी परिवार जल्द ही अखिलेश यादव से बातचीत कर अंतिम निर्णय लेना चाहता है. कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी इस दिशा में सक्रियता दिखा रहा है.

फूलपुर सीट से सपा का उम्मीदवार

सपा ने फूलपुर सीट से मुस्त अपनी ताकत दिखाने के मुस्तफा सिद्दीकी को उम्मीदवार बनाया है, जो पिछले चुनाव में केवल 2000 वोटों से हारे थे. यह दर्शाता है कि सपा चुनाव मेंलिए पूरी तैयारी कर रही है, जबकि कांग्रेस की स्थिति अभी भी अनिश्चित है.

उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं. इनमें से पांच सीटें सपा, तीन बीजेपी और एक-एक राष्ट्रीय लोकदल और निषाद पार्टी के पास हैं. प्रमुख सीटों में मैनपुरी की करहल, कानपुर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, अंबेडकरनगर की कटेहरी, मिर्जापुर की मझवां, अयोध्या की मिल्कीपुर, गाजियाबाद सदर, अलीगढ़ की खैर, मुजफ्फरनगर की मीरापुर और मुरादाबाद की कुंदरकी सीट शामिल है. लेकिन चुनाव आयोग ने फिलहाल 9 सीटों पर ही चुनाव कार्यक्रम घोषित किए हैं.

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दोनों पार्टियों का प्रोडक्ट और ग्राहक एक जैसे

दरअसल, दोनों ही पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे में झगड़े का कारण यह है कि दोनों के वोट बैंक एक ही है. मुस्लिम बहुल एरिया में दोनों को लगता है कि उनकी जीत पक्की है. अब तक के आकड़ों पर नजर डालें तो सपा मुस्लिमों और यादवों के वोटों के बल पर ही सरकार बनाती रही है. यूपी में समाजवादी पार्टी का मजबूत आधार मुस्लिम और यादव रहे हैं. दलितों के बीच भी समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अच्छी पैठ बना ली है.

इस बीच राहुल गांधी ने ‘संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ’ अभियान के नाम पर कांग्रेस के कोर वोट्स मुस्लिम और दलित को फिर से पार्टी में वापस कराई है. इसलिए कांग्रेस कम से कम 3 सीटों की डिमांड कर रही है. अब देखने वाली बात यह होगी कि सपा और कांग्रेस के बीच ये मतभेद चुनावी रणनीति को कैसे प्रभावित करेंगे. क्या दोनों पार्टियां मिलकर चुनावी मैदान में उतरेंगी, या फिर ये मतभेद उनकी संभावनाओं को कमजोर कर देंगे?

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