नेपाल में बनी ओली की ‘बेमेल’ सरकार, क्या भारत के साथ रिश्तों पर पड़ेगा असर?

वैसे तो भारत और नेपाल लंबे वक्त से दोस्त रहे हैं. कहा जाता है कि नेपाल और भारत के बीच रिश्ता 'रोटी-बेटी' का है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि दोनों दोस्त रहे हैं तो दोनों के रिश्तों में ज्यादा बदलाव आने की उम्मीद नहीं है.
KP Sharma Oli

नेपाल के नए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली

Nepal Politics: राजनीति कब किस करवट बैठेगी यह कोई नहीं बता सकता. यहां न तो कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है और न ही स्थायी दुश्मन. राजनीति में सिर्फ हित ही स्थाई होते हैं और इसी हित के सहारे बेमेल गठबंधन भी बनाए जाते हैं.  यह नजारा अब नेपाल में देखने को मिला है. यहां अलग-अलग विचारधारा वाले दो पूर्व प्रधानमंत्रियों की पार्टी ने मिलकर सरकार बना ली है.

केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) (CPN-UML)और शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस के बीच गठबंधन हो गया है. इस वजह से अब पुष्प कमल दहल प्रचंड को पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. ओली और देउबा की पार्टी के बीच एक समझौता भी हुआ है. इसके तहत बाकी बचे कार्यकाल में दोनों ही बारी-बारी से पीएम बनेंगे. शुरुआत में केपी शर्मा ओली पीएम बनेंगे बाद में देउबा.

विश्वास मत हार गए थे ‘प्रचंड’

बता दें कि 12 जुलाई को नेपाली संसद में विश्वास मत पर वोटिंग हुई. 275 सीट वाले संसद में प्रचंड के समर्थन में सिर्फ 63 तो विरोध में 194 वोट पड़े. प्रचंड को विश्वास मत के दौरान करारी हार मिली. इसके बाद अब नेपाल में देउबा और ओली की सरकार बन गई है. इस गठबंधन को राजनीतिक पंडित बेमेल बता रहे हैं. इसके पीछे वजह भी है. दरअसल, केपी शर्मा ओली और देउबा की विचारधारा अलग-अलग है. ऐसे में आइये विस्तार से जानते हैं कि ओली की सरकार बन जाने के बाद अब भारत पर क्या असर होगा?

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क्या भारत के साथ रिश्तों पर पड़ेगा असर?

वैसे तो भारत और नेपाल लंबे वक्त से दोस्त रहे हैं. कहा जाता है कि नेपाल और भारत के बीच रिश्ता ‘रोटी-बेटी’ का है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि दोनों दोस्त रहे हैं तो दोनों के रिश्तों में ज्यादा बदलाव आने की उम्मीद नहीं है. ये नहीं कह सकते कि दोनों के रिश्ते ख़राब होंगे. लेकिन केपी शर्मा ओली अब आ गए हैं तो थोड़ा-सा बदलाव हो सकता है क्योंकि वो पहले भारत से थोड़ा नाराज थे और चीन से खुश.

यहां पिछली घटना याद करने की जरूरत है. याद करिए साल 2020 में नेपाल ने अपना एक नक्शा जारी किया था. इस नक्शे से भारत सहमत नहीं था और सिरे से इसका विरोध किया. नेपाल ने नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा इलाकों को नेपाल की पश्चिमी सीमा के भीतर दिखाया है.इसके बाद हाल ही में नेपाल ने उसी नक्शे को एक नोट में भी डाल दिया, तो इसे लेकर भी भारत में हलचल हुई थी.

अब एक बार फिर से केपी शर्मा ओली की सरकार बन गई है तो भारत के लिए चुनौती हो सकता है. हालांकि, ये गठबंधन (सीपीएन-यूएमएल और नेपाली कांग्रेस) की सरकार होगी. नेपाली कांग्रेस का ज़ोर कूटनीतिक रास्तों के ज़रिए समस्या का समाधान ढूंढने पर होता है. नेपाली कांग्रेस संतुलित और तटस्थ नज़रिया रखते हुए काम करने को कह सकती है, ऐसे में दोनों के रिश्तों में अधिक बदलाव नहीं आना चाहिए. लांकि, एक चुनौती यह भी होगी कि ओली का चीन के प्रति रवैया नरम रहा है.

 

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