‘लगान’ के लिए कैसे 3000 लोगों ने बसाया चंपानेर गांव? आमिर खान ने तो अंग्रेजों को भी सिखा दी थी हिंदी

Lagaan Film Making: साल 2001 में एक फिल्म आई, जिसने भारतीय सिनेमा का नक़्शा ही बदल डाला. आशुतोष गोवारिकर की दो फिल्में पहला नशा और बाज़ी फ्लॉप हो चुकी थीं. इसके बाद उन्होंने ठानी कि वो कुछ बड़ा करेंगे. लेकिन जब उन्होंने लगान की स्क्रिप्ट लिखी तो ये किसी के गले नहीं उतर रहा था. […]
Lagaan Film Making

फिल्म लगान

Lagaan Film Making: साल 2001 में एक फिल्म आई, जिसने भारतीय सिनेमा का नक़्शा ही बदल डाला. आशुतोष गोवारिकर की दो फिल्में पहला नशा और बाज़ी फ्लॉप हो चुकी थीं. इसके बाद उन्होंने ठानी कि वो कुछ बड़ा करेंगे. लेकिन जब उन्होंने लगान की स्क्रिप्ट लिखी तो ये किसी के गले नहीं उतर रहा था. पहले तो आमिर खान ने इसे तीन बार रिजेक्ट किया. आमिर खान ने आशुतोष से पूछा – 1893 में क्रिकेट? ये कैसे हो सकता है?

हालांकि, आशुतोष ने हार नहीं मानी और 6 महीने बाद फिर से आमिर के पास स्क्रिप्ट लेकर पहुंच गए. इस बार आमिर ने न सिर्फ स्क्रिप्ट सुनी बल्कि तुरंत इसे बनाने को भी तैयार हो गए. अब समस्या थी पैसों की. 25 करोड़ का बजट था, और प्रोड्यूसर कोई हाथ डालने के लिए तैयार नहीं था. इस दौरान, आमिर ने खुद इसे प्रोड्यूस करने का फैसला लिया.

गांव बसाना था, असलियत दिखानी थी

फिल्म की शूटिंग के लिए एक पूरा गांव बसाना था और वो भी सूखा पड़ा हुआ. गुजरात के भुज में कुनारिया गांव को फिल्म के सेट के रूप में चुना गया. आमिर ने हर छोटे से छोटे डिटेल पर ध्यान दिया. गांव के लोग असल में क्या पहनते थे, कैसे रहते थे,हर बात पर गौर किया. कलाकारों के लिए खास तौर से धोती-कुर्ता का इंतज़ाम हुआ.

फिल्म की शूटिंग में बहुत सारी मुश्किलें आईं, खासकर जब ब्रिटिश अधिकारी और उनकी टीम के बारे में बात की जाती थी.असल में इस फिल्म में जो ब्रिटिश किरदार थे, उन्हें हिंदी सिखाने की जिम्मेदारी आमिर खान ने खुद उठाई. इन अंग्रेजी कलाकारों को हिंदी सिखाने के लिए इंग्लैंड से विशेष तौर पर एक शिक्षक बुलाया गया था. यह अनुभव भी फिल्म के लिए एक मजेदार लेकिन चुनौतीपूर्ण पहलू था. आमिर ने अपनी दोस्त रशेल ड्वायर की मदद ली. रशेल सिनेमा की क्लास ले रही थीं, और उन्होंने ही सभी ब्रिटिश कलाकारों को हिंदी में ट्रेन किया.

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100 एकड़ खेतिहर जमीन पर बसा गांव

मशहूर फ़िल्म समीक्षक शीला रावल लिखती हैं, “उस समय तक भारत की सबसे मंहगी फ़िल्मों में से एक ‘लगान’ की नींव रखी गई. क़रीब 3000 लोगों ने छह महीने लगातार काम कर 100 एकड़ की खेतिहर ज़मीन पर चंपानेर गांव बसा डाला. गोवारिकर और कला निर्देशक नितिन देसाई ने गुजरात में भुज के पास कुनारिया को इस फ़िल्म की शूटिंग के लिए चुना. आमिर चाहते थे कि भुवन के रोल के लिए वो बाक़ायदा मूछें रखें क्योंकि आमतौर पर भारतीय गांवों के लोग मूछें रखते हैं, लेकिन आशुतोष इस विचार से क़तई सहमत नहीं थे.

उन्होंने आमिर के सामने तर्क रखा, ‘कल्पना कीजिए चंपानेर में सदी का सबसे भयानक सूखा पड़ा है. पानी का नामोनिशान नहीं है और भुवन हर सुबह दाढ़ी बनाने में पानी बर्बाद कर रहा है. आशुतोष ने फ़िल्म की शूटिंग में भाग लेने वाले गांव के लोगों को भी सलाह दी कि वो कुछ दिनों के लिए न तो अपने बाल काटें और न ही अपनी दाढ़ी बनाएं.

शूटिंग में परेशानी

अब जरा क्रिकेट के शॉट्स पर ध्यान दें तो इतनी मेहनत की गई थी कि 1200 शॉट्स तय किए गए थे! सभी खिलाड़ी के हिट्स, फील्डिंग, बाउंड्री सबकुछ स्क्रिप्ट में पहले से तय था. फिर एक दिन, शूटिंग के दौरान प्रदीप सिंह रावत को अपने शॉट्स में परेशानी हुई, और दिन ब दिन कई शॉट्स रीटेक होने लगे! आमिर खान के लिए तो यह फिल्म एक जुनून बन चुकी थी. उन्होंने खुद पिच की लंबाई कम की.

लेकिन लगान ने साबित कर दिया कि मेहनत का कोई दूसरा रास्ता नहीं है. ग्रेसी सिंह ने गौरी का रोल निभाया, और वो हीरोइन की स्टार वैल्यू नहीं, बल्कि उसके किरदार के लिए सही थीं. इस फिल्म का एक और बड़ा पहलू था भानु अथैया की वेशभूषा डिज़ाइनिंग. उन्होंने गांधी फिल्म के लिए भी काम किया था, और लगान के लिए भी ढेर सारी रिसर्च की थी.

चला लगान का जादू

जब लगान रिलीज़ हुई, तो भारतीय सिनेमा में एक नया अध्याय जुड़ गया. फिल्म की शूटिंग और कलाकारों की मेहनत ने इसे एक ऐतिहासिक फिल्म बना दिया. लगान ने ना सिर्फ़ क्रिकेट को सिनेमा में एक नई पहचान दी, बल्कि लोगों के दिलों में भारतीय क्रिकेट के असली नायक की तरह जगह बना ली. लगान अब भी उसी जोश और जुनून के साथ हमारे दिलों में बसी हुई है, जैसे तब थी.

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