बीजेपी ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंकी और हरप्रीत कौर बबला को मेयर के पद का उम्मीदवार बनाया. वहीं, AAP ने भी अपने उम्मीदवार प्रेम लता को मैदान में उतारा और उन्हें हर संभव समर्थन देने की कोशिश की, लेकिन अंत में बीजेपी की रणनीति और हरप्रीत की नेतृत्व क्षमता ने काम कर दिया.
कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दल भी इस सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ने वाले हैं. खासकर, अर्थव्यवस्था के धीमे विकास, बेरोजगारी और कृषि संकट जैसे मुद्दों पर विपक्ष एकजुट होकर सरकार को घेरने की तैयारी में है.
केंद्र पहुंचकर आपको एक करेक्शन फॉर्म भरना होगा. इसमें आपको अपने आधार नंबर, नाम और अन्य जरूरी जानकारी देनी होगी. इसके बाद, आपको यह भी लिखना होगा कि आप बायोमेट्रिक अपडेट करवाना चाहते हैं.
यह पहली बार नहीं है जब नीतीश कुमार किसी अजीब हरकत के कारण चर्चा में आए हैं. इससे पहले भी कई मौकों पर नीतीश कुमार के बयान और क्रियाकलाप विवादों का कारण बने हैं. उदाहरण के तौर पर, पिछले साल बिहार विधानमंडल में जनसंख्या नियंत्रण पर बोलते हुए उन्होंने पति-पत्नी के रिश्तों को लेकर कुछ ऐसी बातें कही थीं, जो बाद में काफी चर्चा का विषय बनीं.
Delhi Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, राजधानी की सियासत में हलचल और तेज़ होती जा रही है. इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपनी 26 साल की सत्ता से बाहर रहने की लंबी कहानी को खत्म करने के लिए पूरी ताकत से मैदान में उतरी है. […]
अब इस पूरे विवाद को लेकर विश्वविद्यालय ने कार्रवाई की है. जांच के आदेश दिए गए हैं और प्रोफेसर को छुट्टी पर भेज दिया गया है. यूनिवर्सिटी के अधिकारी इस मामले की गंभीरता से जांच कर रहे हैं और यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस वीडियो के पीछे क्या वजह थी.
दिल्ली के चुनावी इतिहास में भारतीय जनता पार्टी आज तक जंगपुरा की विधानसभा सीट पर अपना परचम नहीं लहरा पाई है. 1993, 1998, 2003 और 2008 के चुनावों में जहां कांग्रेस ने इस सीट पर झंडे गाड़े थे वहीं 2013, 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी.
ओवैसी ने आगे कहा, "इनकी जेल यात्रा आम लोगों के लिए एक मिसाल बन गई है, जहां अपराधी सजा से बचने के लिए विभिन्न रणनीतियां अपनाते हैं. इन नेताओं को न्याय क्यों मिल जाता है, जबकि उनके जैसे सामान्य लोगों को कड़ी सजा मिलती है, यह एक बड़ा सवाल है."
यह बात 1917 की है, जब गांधी चंपारण में नील के खेतों में काम कर रहे किसानों के लिए संघर्ष कर रहे थे. किसानों की हालत इतनी दयनीय थी कि उन्हें गुलामों जैसा जीवन जीने को मजबूर किया जा रहा था. गांधी ने उनकी मदद के लिए कदम उठाए, और यह सच्चाई ब्रिटिश सरकार के लिए किसी आपातकाल से कम नहीं थी.
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