कांग्रेस के सामने सीट बचाने की चुनौती, टेंशन में बीजेपी…समझिए छत्तीसगढ़ नगरी निकाय चुनाव का सियासी गणित

CG Local Body Elections: भाजपा का हाल भी कुछ खास अच्छा नहीं है. भाजपा के पास 14 नगरीय निकायों में से एक भी सीट नहीं है, और यह स्थिति पार्टी के लिए चिंता का विषय बन चुकी है. सत्ता में रहते हुए अगर भाजपा नगरी निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई तो यह पार्टी के लिए बड़ी शर्मिंदगी का कारण बन सकता है.
प्रतीकात्मक तस्वीर

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CG Local Body Elections: 2025 का साल छत्तीसगढ़ के लिए चुनावी वर्ष साबित हो सकता है. दरअसल, नगरी निकाय चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है. इसके साथ ही अब यह चुनाव किसी सामान्य चुनाव से कहीं बड़ा और चुनौतीपूर्ण हो गया है. इस बार नगरीय निकायों का चुनाव एक चरण में होगा. वहीं, पंचायत चुनाव के लिए तीन चरणों में मतदान होगा.

कांग्रेस के लिए यह अपनी खोई हुई जमीन को बचाने का चुनाव है, जबकि भाजपा के लिए यह अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा और सत्ता पर काबिज रहने का सवाल बन चुका है. आइए जानते हैं कि यह चुनावी महासंग्राम किस दिशा में जा सकता है और क्या रणनीतियां काम करेंगी.

कांग्रेस के लिए चुनौती, भाजपा को किस बात का डर!

छत्तीसगढ़ में 2019 के नगरी निकाय चुनावों में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया था. प्रदेश के 14 नगरीय निकायों में कांग्रेस का कब्जा था, और सभी नगर निगमों के महापौर कांग्रेस के थे. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. कांग्रेस अब अपनी इन 14 सीटों को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. एक ओर जहां पार्टी के नेता दिल्ली में बैठकें कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रदेश में तैयारी की गति धीमी दिखाई दे रही है.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि भाजपा सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा है, और इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. उनका यह भी कहना है कि पिछले एक साल में भाजपा ने जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरकर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है. हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार, और रायपुर के गोली कांड जैसी घटनाएं भाजपा के खिलाफ माहौल बना रही हैं. ऐसे में, कांग्रेस को उम्मीद है कि लोग भाजपा से नाउम्मीद हो चुके हैं और वह कांग्रेस की ओर रुख करेंगे.

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लेकिन, कांग्रेस की आंतरिक स्थिति पर नजर डालें तो वहां सब कुछ ठीक नहीं चल रहा. पार्टी के नेता दिल्ली में व्यस्त हैं, और प्रदेश में चुनावी रणनीति पर काम करने वाले नेता लापता हैं. कांग्रेस की जड़ें सियासी संकट से घिरी हुई हैं, और यह संकट चुनावी मैदान में उनकी ताकत को कमजोर कर सकता है. पार्टी के भीतर किसी स्पष्ट दिशा का अभाव दिखता है, और यही वजह है कि कांग्रेस के रणनीतिकार अपने महापौरों और पदाधिकारियों की उपलब्धियों को जनता के सामने नहीं ला पा रहे हैं.

भाजपा का हाल भी कुछ खास अच्छा नहीं

दूसरी ओर भाजपा का हाल भी कुछ खास अच्छा नहीं है. भाजपा के पास 14 नगरीय निकायों में से एक भी सीट नहीं है, और यह स्थिति पार्टी के लिए चिंता का विषय बन चुकी है. सत्ता में रहते हुए अगर भाजपा नगरी निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई तो यह पार्टी के लिए बड़ी शर्मिंदगी का कारण बन सकता है.

बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस के महापौरों के कार्यकाल में भ्रष्टाचार की कई घटनाएं सामने आईं, और अब पार्टी अपनी उपलब्धियों को छुपा रही है. भाजपा ने दावा किया है कि पार्टी ने पिछले साल 60 लाख नए सदस्य जोड़े हैं और नगरी निकाय चुनाव के लिए अपनी टीम भी तैयार कर दी है. साथ ही, पार्टी ने सदस्यता अभियान के जरिए एक मजबूत आधार तैयार किया है, और अब वह चुनावी रणभूमि में उतरने के लिए तैयार है.

लेकिन भाजपा की रणनीति भी पूरी तरह से साफ नहीं है. पार्टी को इस बात का डर है कि अगर चुनाव में सफलता नहीं मिली, तो इसका असर सीधे तौर पर पार्टी की साख पर पड़ेगा. भाजपा की स्थिति में फिलहाल अधिक जोखिम है, क्योंकि वह सत्ता में है और हारने पर उसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. अगर भाजपा अपनी हार से उबरने में नाकाम रहती है, तो यह उसके नेतृत्व के लिए बड़ा संकट खड़ा कर सकता है.

कांग्रेस के लिए अपनी 14 सीटें बचाना मुश्किल

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. वह पहले से ही जीरो पर है, और अगर उसे इस बार भी हार मिलती है तो इसका उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए यह चुनावी बर्फ तोड़ने जैसा है. क्योंकि उसने पिछली बार सत्ता में रहते हुए 14 सीटों पर जीत हासिल की थी, और अब सत्ता के बाहर होते हुए उसे इन सीटों को बचाना काफी मुश्किल हो सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस के पास अब उतनी ताकत नहीं है, और भाजपा के पास सत्ता का फायदा है. सत्ता में रहते हुए पार्टी को एक अतिरिक्त लाभ मिलता है, जो उसे चुनावी रणभूमि में एक कदम आगे बढ़ाता है.

कांग्रेस और भाजपा की रणनीति

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपनी-अपनी रणनीतियों पर काम कर रही हैं. कांग्रेस में बिखरे हुए नेतृत्व और संगठन की कमजोरी दिख रही है, जबकि भाजपा ने पिछले कुछ महीनों में अपनी ताकत को पुनः संगठित किया है. भाजपा ने अपने सदस्यता अभियान को सफलतापूर्वक चलाया और अब वह नगरी निकाय चुनावों के लिए पूरी तरह से तैयार है.

क्या होगा इस चुनाव में?

आखिरकार, यह चुनाव छत्तीसगढ़ की सियासत के लिए निर्णायक साबित हो सकता है. भाजपा के पास सत्ता है, लेकिन कांग्रेस अपनी खोई हुई ताकत को वापस पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. चुनावी माहौल गर्म हो चुका है, और अब यह देखना होगा कि कौन बाजी मारता है. क्या भाजपा अपनी ताकत से कांग्रेस को पछाड़ पाएगी, या कांग्रेस अपनी 14 सीटें बचाकर चुनावी मैदान में जीत का परचम लहराएगी?

समय बताएगा कि इस सियासी संघर्ष का परिणाम क्या होगा, लेकिन एक बात साफ है – इस चुनाव में कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी, और दोनों ही पार्टियां अपनी पूरी ताकत झोंकने वाली हैं.

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