न जाति, न जेंडर और न ही जोन…इन मुद्दों पर सबसे ज्यादा वोट करते हैं दिल्ली वाले!

साफ पानी, यानी वो मुद्दा जो जब उठता है तो दिल्लीवालों की आंखों में आंसू और गुस्सा दोनों आ जाते हैं. अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो आपको ये मुद्दा कभी न कभी परेशान जरूर करता होगा. सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में लगभग 3.8 प्रतिशत लोगों ने साफ पानी को चुनावी मुद्दा माना था.
Delhi Election 2025

प्रतीकात्मक तस्वीर

Delhi Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव की जो पिच है, उसमें हर बार कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं, जो सिर्फ गेंद को घुमा नहीं देते, बल्कि मैच का रुख ही बदल देते हैं. सोचिए, जब चुनावी मैदान में जाति, जेंडर और क्षेत्र जैसे मुद्दे होते हैं, तब किसी को महंगाई, बेरोजगारी, विकास, महिला सुरक्षा और साफ पानी जैसे मुद्दों के बारे में सोचना भी मुश्किल लगता है. लेकिन दिल्ली के चुनाव में यही वो मुद्दे हैं जो बार-बार खेल का रुख बदल देते हैं. तो चलिए, हम भी इस चुनावी मुकाबले के ये पांच सुपरस्टार मुद्दे बारी-बारी से समझते हैं, जिनकी ताकत के सामने जाति और जेंडर जैसे बड़े मुद्दे भी थोड़ा फीके पड़ जाते हैं.

चुनाव का पावर प्ले महंगाई

अगर आप दिल्ली में रहते हैं, तो आपने नोट किया होगा कि हर बार चुनावी हलचल के बीच महंगाई की बात सबसे पहले उठती है. ये मुद्दा है, जो सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है. सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक, महंगाई के मुद्दे पर 2013 में 39.4 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले थे. इसका मतलब ये कि दिल्लीवालों के लिए महंगाई ने घर के बजट से लेकर चुनावी पैटर्न तक का बड़ा असर डाला.

सोचिए, अगर आपने घर की छोटी सी चीज़, जैसे दूध या दवाइयां, बाजार से खरीदी हो और कीमतें आसमान छूने लगी हों, तो चुनावी समय में आप क्या सोचेंगे? बिल्कुल, आप महंगाई को मुद्दा बना कर वोट डालेंगे. अब, फ्रीबीज और वादों के हथियार के साथ तीनों पार्टियां महंगाई के खिलाफ कुछ ऐसा करने की कोशिश कर रही हैं, ताकि वोटरों को राहत की उम्मीद हो.

बेरोजगारी

महंगाई से आगे बढ़ते हुए, अब हम बात करते हैं उस मुद्दे की, जिसने दिल्ली के युवा वर्ग को चुनावी खेल में सीधा फाइनल खिलाड़ी बना दिया है. बेरोजगारी! सीएसडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 में बेरोजगारी को लेकर सिर्फ 2.5 प्रतिशत वोट पड़े थे, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बढ़ा, यह मुद्दा बढ़ता गया. 2015 में बेरोजगारी की वजह से लगभग 4.1 प्रतिशत लोग अपने वोट का प्रयोग करने पहुंचे, और 2020 में यह आंकड़ा लगभग दोगुना होकर 10 प्रतिशत तक पहुंच गया. यह सीधा संदेश था कि दिल्ली का युवा वर्ग सरकार से कुछ ठोस जवाब चाहता है.

अब सोचिए, अगर आप एक युवा हैं, जो अच्छे खासे डिग्री के साथ घर बैठे हो, तो आप क्या चाहते? किसी पार्टी का घोषणापत्र जो आपको नौकरी दे सके, या फिर वह पार्टी जो सिर्फ लुभावने वादे करे? बेरोजगारी के मुद्दे पर अब हर पार्टी को अपनी रणनीति दिखानी ही पड़ रही है. यह मुद्दा न सिर्फ युवा वोटरों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है, बल्कि यह दिल्ली की चुनावी राजनीति का वो तीर है जो निशाने पर रहते हुए भी नुकसान पहुंचा सकता है.

दिल्ली का सपना ‘विकास’

दिल्ली, यानि विकास का दूसरा नाम! यहां बिना विकास की बातें किए शायद कोई पार्टी चुनावी घोषणापत्र भी नहीं पेश कर सकती. 2013 में विकास को लेकर महज 9.9 प्रतिशत लोग वोट डालने पहुंचे थे, लेकिन 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 11.3 प्रतिशत हो गया. और फिर, 2020 में यह बढ़कर 20 प्रतिशत तक पहुंच गया. ये दिखाता है कि दिल्ली के लोग अब सिर्फ बुनियादी सुविधाओं तक सीमित नहीं रहना चाहते, वे अब आधुनिक, स्मार्ट, और विकासशील दिल्ली के ख्वाब देख रहे हैं.

सड़कें, मेट्रो, शिक्षा, स्वास्थ्य – ये सब अब दिल्लीवासियों के लिए विकास के पैमाने बन गए हैं. इस बार भी विकास की हर योजना का जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है, चाहे वह नई मेट्रो लाइन हो, स्मार्ट सड़कें हों, या बेहतर स्वच्छता सेवाएं. विकास अब सिर्फ एक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह दिल्ली का सबसे बड़ा सपना बन चुका है. कोई भी पार्टी इस मुद्दे को नजरअंदाज करने की चेष्टा नहीं कर सकती.

दिल्लीवालों का हक ‘साफ पानी’

साफ पानी, यानी वो मुद्दा जो जब उठता है तो दिल्लीवालों की आंखों में आंसू और गुस्सा दोनों आ जाते हैं. अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो आपको ये मुद्दा कभी न कभी परेशान जरूर करता होगा. सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में लगभग 3.8 प्रतिशत लोगों ने साफ पानी को चुनावी मुद्दा माना था. फिर 2015 में जब आम आदमी पार्टी ने फ्री पानी देने का वादा किया, तो यह मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया.

लेकिन, क्या दिल्ली के हर घर में साफ पानी मिल रहा है? इस सवाल के साथ आज भी दिल्ली में राजनीति चल रही है. पानी के टैंकरों से लेकर घर-घर तक साफ पानी पहुंचाने के वादे अब हर चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा बन गए हैं. इस बार भी, हर पार्टी ने अपनी योजनाओं में साफ पानी की बात की है, क्योंकि दिल्लीवाले जानते हैं कि पानी सिर्फ प्यास बुझाने का साधन नहीं, बल्कि उनका अधिकार भी है.

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महिला सुरक्षा

दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा की बात करते हुए हर किसी को ‘निर्भया’ कांड याद आता है. 2012 के इस हादसे ने दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मुद्दे को ज्वलंत बना दिया था. 2013 में 2.3 प्रतिशत लोग महिला सुरक्षा को अहम मुद्दा मानते थे, लेकिन 2015 में यह बढ़कर 8.1 प्रतिशत हो गया. अब, यह मुद्दा राजनीतिक चर्चा का मुख्य विषय बन चुका है, और हर पार्टी अपने घोषणापत्र में महिला सुरक्षा के लिए कदम उठाने का वादा कर रही है.

दिल्लीवालों को पता है कि महिला सुरक्षा पर ठोस कदम उठाए बिना समाज का कोई विकास नहीं हो सकता. इसलिए यह मुद्दा चुनावी मैदान में अपनी पूरी ताकत के साथ खड़ा है. चाहे वह सड़कों पर सुरक्षा व्यवस्था हो या फिर स्कूलों और कॉलेजों में महिलाओं के लिए अलग से व्यवस्था, यह मुद्दा अब हर चुनाव में अहम बन चुका है.

गौरतलब है कि दिल्ली के चुनाव में जाति, जेंडर, और क्षेत्र के मुद्दे कुछ समय के लिए छिप सकते हैं, लेकिन महंगाई, बेरोजगारी, विकास, महिला सुरक्षा और साफ पानी जैसे मुद्दे हर बार चुनावी खेल में जीतने के लिए सबसे ताकतवर खिलाड़ी साबित होते हैं. इन पांच मुद्दों ने ना सिर्फ वोटरों की नब्ज पकड़ी है, बल्कि चुनावी रणनीतियों को भी आकार दिया है. इस बार देखना दिलचस्प होगा कि आखिर दिल्ली की जनता कैसे वोट करती है.

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