हकीकत बनने जा रहा है ‘नक्सल मुक्त’ भारत का ख्वाब, अमित शाह की प्लानिंग से छत्तीसगढ़ में बिगड़ा नक्सलियों का खेल!

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह
Naxal Free India: सुरक्षाकर्मी और नक्सलियों के बीच छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में पिछले 36 घंटे से जो मुठभेड़ चल रही है, वह बस एक बात को और पुख्ता कर रही है कि नक्सलवाद का खतरा अभी भी भारत के कई हिस्सों में फन फैलाकर कर बैठा है. कुल्हाड़ीघाट के भालुडिग्गी की पहाड़ियों में ये लड़ाई भले ही अब तक 16 नक्सलियों की जान लेकर जारी हो, लेकिन सवाल ये है कि क्या 2026 तक भारत को ‘नक्सल मुक्त’ किया जा सकेगा?
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के बीजापुर में बड़ा नक्सली हमला हुआ था. नक्सलियों ने सुरक्षाबलों की एक बख्तरबंद गाड़ी को निशाना बनाकर IED ब्लास्ट किया. इस हमले में 9 जवान शहीद हो गए थे. हालांकि, सुरक्षाबलों ने नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने की ठानी है, और दिल्ली से फरमान भी जारी हो गया है, लेकिन एक सवाल अब भी हर किसी के मन में है कि क्या ‘नक्सल मुक्त’ भारत का ख्वाब हकीकत बन सकता है.
कहां से आ गए नक्सली?
किसे पता था कि 1967 में पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव नक्सलबाड़ी में शुरू हुआ किसानों का एक आंदोलन, समय के साथ देश के आधे हिस्से में खून-खराबे और तबाही का कारण बन जाएगा. यह नक्सलवाद पहले पश्चिम बंगाल, फिर बिहार, ओडिशा, झारखंड, और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में फैला, और 2000 के बाद तो जैसे इसकी ताकत ही दोगुनी हो गई. 2003 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर हमला करने के बाद, नक्सलियों ने पूरे देश में अपनी मौजूदगी महसूस कराई.
नक्सलवाद की ताकत
2000 से 2010 तक नक्सलियों ने ऐसी-ऐसी धमाकियां दीं कि सरकार और सुरक्षाबल हर कदम पर चौंकते रहे. 2005 में ओडिशा में 700 से ज्यादा लोग नक्सली हमलों में मारे गए. नक्सली, राजनीतिज्ञों, सेना के जवानों, और सुरक्षाबलों तक को अपनी गोलियों का निशाना बनाते रहे. लेकिन फिर 2011 में सरकार ने ठान लिया कि अब बहुत हो चुका. तब के पीएम मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को ‘देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा’ कहा और विकास को इसकी समाप्ति का सबसे मजबूत उपाय बताया. और फिर शुरू हुआ एक लंबा ऑपरेशन. सख्त कानून, सैन्य बलों की तैनाती और सलवा जुडूम जैसी योजनाओं के जरिए नक्सलियों के खिलाफ जबर्दस्त कदम उठाए गए.
नक्सलियों को फंड कहां से मिलता है?
कभी सोचा है कि नक्सली अपने बम, बंदूक, और आईईडी जैसे खतरनाक हथियारों को कैसे खरीदते हैं? उनका पूरा नेटवर्क और उनकी ताकत कहां से आती है? आइए, आपको बताते हैं कि नक्सलियों की फंडिंग का खतरनाक तरीका क्या है. नक्सलियों का मुख्य वित्तीय स्रोत है – अवैध लेवी और वसूली. वे अपने इलाकों में स्थानीय व्यवसायों, ठेकेदारों, और खनन कंपनियों से ‘भारी रकम’ वसूलते हैं, जिससे उनका नेटवर्क मजबूत होता है. यही नहीं, जंगलों से खनिज निकालने और गैरकानूनी लकड़ी तस्करी से भी उन्हें मोटी रकम मिलती है. इसके अलावा, नक्सली संगठन सरकार के ठेकेदारों से भी पैसे वसूलते हैं, जिन्हें वे धमकाकर या डराकर अपनी मुहिम में शामिल करवा लेते हैं.
कुछ रिपोर्ट्स में तो यह भी दावा किया गया है कि नक्सलियों को विदेशी फंडिंग भी मिलती है, खासकर उन अंतरराष्ट्रीय संगठनों से जो किसी न किसी कारण से भारतीय सरकार के खिलाफ होते हैं. और ये काले धन के रास्ते उन्हें आत्मनिर्भरता का अहसास दिलाते हैं,
2026 तक नक्सल मुक्त भारत?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बड़े जोश के साथ दावा किया था कि भारत 2026 तक नक्सलवाद से मुक्त होगा. क्या सच में ये संभव है? आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में नक्सलवादी घटनाओं में गिरावट आई है. 2010 में जहां 126 जिले नक्सल प्रभावित थे, वही अब ये संख्या घटकर 38 रह गई है. 2025 तक ये और भी कम हो जाएगी. नक्सलवादी हमलों में 73% कमी आई है, और मौतों में 86% की गिरावट हुई है.
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लेकिन क्या ये सबकुछ इतना आसान है?
वहीं, कुछ इलाकों में नक्सलियों का नेटवर्क अभी भी मजबूत है. हालांकि आंकड़े बताते हैं कि नक्सलवाद कमजोर हुआ है, लेकिन कुछ इलाके जैसे झारखंड और छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों का नेटवर्क अभी भी अपनी जड़ें जमाए हुए है. इन इलाकों में नक्सलियों को सेना की योजनाओं की खुफिया जानकारी मिल जाती है, और वे आईईडी (Improvised Explosive Devices) जैसी खतरनाक चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं. इन क्षेत्रों में नक्सली संगठनों की ताकत भी कई बार सरकार की कार्रवाई से कहीं ज्यादा होती है.
आंकड़ों में सफलता की कहानी
सुरक्षाबलों ने नक्सलवाद के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए पिछले एक साल में 125 मुठभेड़ों में 213 माओवादी उग्रवादियों को ढेर कर दिया. और यही नहीं, इन ऑपरेशनों में सुरक्षा बलों ने 286 हथियार और 335 आईईडी भी बरामद किए, जिससे नक्सलियों के खतरनाक हमलों की योजना नाकाम हो गई. इसके अलावा, 937 माओवादियों को गिरफ्तार किया गया और 800 ने आत्मसमर्पण किया, जो दिखाता है कि सुरक्षाबलों का दबदबा नक्सल प्रभावित इलाकों में अब कहीं ज्यादा मजबूत हो चुका है.
एक और बड़ी कामयाबी सामने आई जब दंतेवाड़ा के जंगलों में 31 माओवादी मार गिराए गए, जिनमें प्रमुख कमांडर भी शामिल थे. यह ऑपरेशन सिर्फ बीजापुर, नारायणपुर, और सुकमा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे इलाके में नक्सलियों की कमर तोड़ने के साथ-साथ विकास कार्यों को भी रफ्तार मिली. इन सफल ऑपरेशनों से न सिर्फ नक्सलियों की ताकत कमजोर पड़ी, बल्कि स्थानीय लोग अब अपनी ज़िंदगी बेहतर बनाने के लिए सामने आ रहे हैं.
सुरक्षाबलों की नक्सल विरोधी रणनीति का असर सुरक्षा कैंपों की स्थापना से भी साफ दिख रहा है. 42 नए फारवर्ड सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए और अगले कुछ महीनों में 11 और कैंप बनाए जाने हैं. इन कैंपों ने न केवल सुरक्षा बल्कि विकास की दिशा में भी नई शुरुआत की है. साथ ही, सड़कों और पुलों के निर्माण ने बुनियादी ढांचे में सुधार किया, जिससे आदिवासी इलाकों तक विकास पहुंच रहा है. इन कदमों से सुरक्षा बलों और स्थानीय प्रशासन की उपस्थिति मजबूत हो रही है, और अब यह साफ हो गया है कि नक्सलवाद का अंत कोई असंभव बात नहीं है!
क्या सच में ‘नक्सल मुक्त’ भारत संभव है?
सच्चाई ये है कि नक्सलवाद के खात्मे में समय नहीं लगेगा. कुछ इलाकों में नक्सलियों का प्रभाव अब भी गहरे तक फैला हुआ है, लेकिन केंद्र सरकार और सुरक्षाबलों ने पूरी ताकत झोंक दी है. निगरानी तंत्र को मजबूत किया गया है, और सेना के ऑपरेशन भी तेज़ हुए हैं. विकास के रास्ते पर कदम बढ़ाए गए हैं, और उग्रवादियों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रलोभन दिए गए हैं. हर दिन लगभग नक्सलियों को टारगेट किया जा रहा है.
हो सकता है कि 2026 तक नक्सलवाद का पूरी तरह सफाया शायद न हो पाए, लेकिन अगर यह चलता रहा, तो 2030 से पहले हमरा एक नक्सल मुक्त भारत देखने का सपना जरूर सच हो सकता है. खैर, अब तो यही कहना पड़ेगा – “कभी-कभी जीतने के लिए, बड़ी लड़ाईयों का सामना करना पड़ता है.” भारत की सेना और सरकार इन लड़ाइयों को धैर्य, शक्ति, और रणनीति के साथ लड़ रही है, और एक दिन, यह उम्मीद सच साबित होगी कि भारत को नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त किया जा सके.