होली पर रंग खेलने की शुरुआत कैसे हुई?
होली
Holi: होली की शुरुआत से जुड़ी पौराणिक कथा एवं पुराणों के अनुसार रंग वाली होली खेलने का संबंध भगवान श्री कृष्ण और ब्रज की किशोरी राधा रानी से है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण ने ग्वालों के संग मिलकर होली खेलने की प्रथा शुरू की थी. होली का त्योहार आकर्षण और मनोरम रंगों का त्यौहार है. यह एक ऐसा त्यौहार है, जो हर धर्म , संप्रदाय , जाति बंधन की सीमा से परे जाकर लोगों को भाईचारे का संदेश देता है .
होली में रंग खेलने के पीछे क्या है पौराणिक कथा?
प्राचीन कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का रंग सांवला था और राधा रानी गोरी थीं. इस बात की शिकायत श्री कृष्ण ने मैया यशोदा से कई बार की और मैया उन्हें समझा-बुझाकर टालती रहीं. लेकिन जब वह नहीं माने तो मैया ने यह सुझाव दिया कि जो तुम्हारा रंग है, उसी रंग को राधा के चेहरे पर भी लगा दो. तब तुम्हारा और राधा का रंग एक जैसा हो जाएगा. नटखट कृष्ण को मैया का यह सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने मित्र ग्वालों के संग मिलकर कुछ अनोखे रंग तैयार किए और ब्रज में राधा रानी को रंग लगाने पहुंच गए. श्री कृष्ण ने साथियों के साथ मिलकर राधा और उनकी सखियों को जमकर रंग लगाया. ब्रज वासियों को उनकी यह शरारत बहुत पसंद आई और तब से रंग वाली होली का चलन शुरू हो गया, जिसे आज भी उसी उत्साह के साथ खेला जाता है.
होली पर रंगों का महत्व
होली के दिन एक-दूसरे को रंग लगाकर लोग अपनी खुशी का इजहार करते हैं और इस त्योहार को पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं. होली का दिन इस कारण से ही रंगों का त्योहार कहलाता है. होली पर एक-दूसरे को रंगों में रगने को लेकर लोगों में बहुत उत्साह दिखाई देता है. हमारे जीवन में रंगों का एक विशेष महत्व जो है. जीवन में हर रंग की अपनी विशेषता है, जैसे- लाल रंग प्रेम और उर्वरता को दर्शाता है. वैसे ही पीला हल्दी का रंग है और पीला रंग शुभता को दर्शाता है, नीला कृष्ण का रंग है और हरा रंग बसंत की शुरुआत और कुछ नया करने का प्रतीक है. इसी प्रकार सभी रंगों का हमारी जिंदगी से गहरा नाता है.